Book Title: Mahasati Sur Sundari
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpamala

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Page 25
________________ ( २२ ) कपडा मानो बिलकुल जिर्ण हो गये शरीर निस्तेज और कमजोर हो गये थे सुरसुन्दरी सबकों दीलासा विश्वास और हिम्मत दे रही थी एसे करते करते छ मासमें एक कंचनपुर नगर आया उस नगर के बाहार शितल छाया और जलसे आरामकारी बगेचा था उसके अन्दर वह दशोंजणे कुशलता से पहुंच गये नगरकी छटा अच्छीथी दुरसेही रमणिय दीख पडता था बडे बडे मन्दिर मकानायत और सेठ साहुकारोसे प्रमुदित था. सुरसुन्दरोने सोचा कि यह नगर विशाल है वास्ते मेरे लालोका यहां जरुर ग्राहक होगा आप पेसाबादिका कारण बतलाके दुर जा उस सात लालोसे एक लाल (रत्न) निकालके सुसराजी के निजर करी और बोलीकि हे सेठजी में आपके घर से ग्रह लाल लाइ हुं इसे इस नगर में वेचके अपने मकानादिकी तजबीजकर लिजिये लालकों देख सेठजीने सोचा कि देवीका कहना सर्व सत्य है यह मेरी बहु वडी भाग्यशाली है चतुर है समयदक्ष है धन्य है इस्की मातापिता और बुद्धिकों हे आर्य में समजता हुं कि तुं आज हम सबके जीवनमें बडी सहायता कर रही है इत्यादि सत्कारकर अपने पुत्रोंको बुलवाये और कहने लगे कि हे पुत्रों तुम हुसीयार हो चतुर हो ज्ञवेरातके वैपारी हो ज्यादा तुमको क्या शिक्षा देवे यह लाल सवाकोडकि है पांच सात लाख कम आवे वहां तक तो वेच देना अगर ज्यादा नुकशान होता हो तो गीरवे अडाणी रख इसपर पचासलन द्रव्य ले एक मकानकी तपास कर कोराये या मूल्य ले दो तांगे हमारे लिये भेज देना तांके हम सब आजावेगा फीर यह वैपारादि कर अपने दुःख के दिन निकाल देंगें । इत्यादि भलामण दी कि अपने दिन आज कल ठीक नही है वास्ते हुसीयारीसे काम करना. च्यारो पुत्र खुसी हो उस लालको ग्रहन कर नगर में चले जहां झवेरी बजार है वहां आये वहांपर एक मुमण शेठ अपनि दुकान पर बैठा था वह केसा था इसके लिये कवि कहता है कि । " उंचा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com .

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