Book Title: Mahasati Sur Sundari
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpamala

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Page 36
________________ (३३) इस दुष्टको शूली दे देना ही ठीक है इसपर नापितने अर्ज करी कि हजुर आप मुझे शुली दो चाहे हमारे चचा बचेको मरवा डाले परन्तु मेरी आमा यह कबुल नही करती है कि यह च्यारे पुरुष है में दावा के साथ कह सकता हूं कि यह च्यारो ओरतो है अगर मेरा विश्वास हजुरको नहो तो एक अन्तिम परक्षा ओर कर लिजिये । राजाने कहा कि वह कोनसी? नापितने कहा कि आपके जो रत्नसुन्दरी बाइ बडे हो गये है उसकी सादि इसके साथ कर दीजिये । राजाने सोचा कि अगर चम्पानगरी के राजाके पुत्र है तब तो मेरे बाइकी सादि करना ही है और ओरतो होगा तो इस परक्षामें तो अवश्य खबर हो ही जायगी। इस विचारसे दो च्यार दिनोके बाद दरबार प्रधानजीसे कहा कि आप जावो अपने रत्नसुन्दरीकी सादि सुरसुन्दरजीके साथ कर दे. यह सुन प्रधाननी सुरसुन्दरजीके मकांनपर आये और सभ्यतासे अर्ज करी कि आप पर दरबारकि पूर्ण कृपा है दरबार आपनि कन्या आपको देनी चाहाते है वास्ते उस कन्या रत्नको आप स्वीकार करके हमे कृतार्थ किजिये. इसपर सुरसुन्दरने कहा कि बहुत अच्छा है दरबारकि हमारे पर अनुग्रह कृपा है परन्तु इस बख्त हम लाचार है। कारणकि हमारे देशमें यह रवेज है कि जिस्के पिता मोजुद हो वह लडका अपने हाथोसे सादि कर लग्न कर ले वह उत्तम उच्च कुलीन न माना जाता है उस मर्यादा पालन के लिये इस बख्त में दरबारके हुकमको स्वीकार नही कर सकता हूं यह सुन प्रधानजी दरबारके पास माये सब हाल सुनाया. दरबारने सोचा कि यह कोइ वाडा चातुर है स्यात् नापितकि बात सच तो न हो जाय । दुसरी दफे और प्रधानजीको भेजाकि कुंवरसाबको अर्ज करो कि आपके देशका रीत रवेज मर्यादा वहां ही काम भाति है भाप नितिके Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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