Book Title: Mahasati Sur Sundari
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpamala

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Page 39
________________ ( ३६ ) राजसुता धैर्यताको धारण कर बहुत समजाया कि आप इस समय आतुर हो रहे है किन्तु आपको भविष्यका विचार करना चाहिये अगर आपके काकाजीकी माफीक हो गया तो तांम उम्मर भर मेरा क्या हाल होगा में हरगीज इस बातको स्वीकार न करूगी बादमे कुंवरजीने कहा कि आपकि समजदारी अच्छी है किन्तु ओरतोमें विकलपणा प्रायः अधिक हुवा करता है प्रभातको आप निचे जायेंगे ओर वहां आपके सखीयों विगरह पुच्छेगा तो आप क्या कहोगे । ' रत्नसुन्दरीने कहाकि कुंवर साहिब क्या आप मुजे दाशी गोली या जाति कूलद्दीन अपठित मूर्ख ही समज रखी होगा कि में मेरी न्युनता वाली बातें कहुंगी हरगीज नही आपतो सर्व वातोंमे योग्य है किन्तु कीसी आदमिमे कुच्छ न्यूनता हो तो क्या उसे बाहार कही जाति है कुंवरजीने कहा कि तो फीर आपको सखोयो पुच्छेगा तो आप क्या कहोगे । पत्नीने कहा कि में कहूंगी कि मेरे पति वह ही सीरदार है एक तो क्या परन्तु पचास हो तो उनोकी अभिलाषा पूर्ण कर सकते है इत्यादि इस पर कुंवरजीने कहा कि यादा रखीये अगर इस्मे कुच्छ भी फरक पडा तो तुमारे हमारे आजसे ही फारगती समजना । वार्तालाप कर दूसरा पलंगपर पास होमें रत्नसुन्दरी शयन कर लीया वाते वातेमें कुकडे बोलने सरू हुवा कि रत्नसुन्दरी मुजरो कर निचे चली गई आगे खवासजी बाइजीकि इन्तजारीमें थे बाइजी आते के साथ ही सखीयोसे पुच्छाया कि बाइजी आपके हाथोकी मेंदीका रंग तो अच्छा आया है कहो गुप्त मजे की बातें ? बाइजीने कहा कि क्या पुच्छती हो मेने तो पूर्व भवमे अच्छे दीलसे ईश्वर पूजा करी थी कि इस भवमे मनो इच्छत वर मुझे मीला है इत्यादि सफाइकी बातें कह दी । यह बाते सब दरबार के पास गइ नापितको बुलवाके कहा रे पापीष्ट तुमने मेरा कीतना नुकशान कीया है पहले तो मेरे प्राणसे प्यारे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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