Book Title: Mahasati Sur Sundari
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpamala

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Page 35
________________ (३२) मरना अधिक दुःख हुवा अब जो चलु न करे तो यह सीरदार जानेगा की क्या राजा डाकी है अगर चलु करदीया जाय तो क्षुधा सहन करनी पडेगा. बस राजाको जबरन् चलु करना ही पडा. सबकों रजा देने के बाद नापितको बुला के नग्न तलवारसे दरबार बोला रे नालायक तुमने मेरा कीतना नुकशान कीया आज तेरा सिर काट देना चाहिये। खवासने कहा कि खावन्दा मेरा सिर तो आपके हाथमें ही है आपको जरूर हो तब ही काटसक्ते है परन्तु एक परिक्षा तो ओर कर लिजिये । राजाने कहा कि वह कोनसी. नाइने कहा कि हजुर एक मेला भरा के उसके अन्दर दुकानोकी दो लेन लगाइजा जिस्मे एक लेनमें तो ओरतों के योग्य कजल टीकी सूरमा हींगलु चुडी कचकोली नैयवर हार बाजु पकडे याने वस्त्रमूषणादि ओरतो के श्रृंगार के पदार्थ रखा दीया जावे ओर दुसरी लैनमें राजपुत्रोके तलवार बन्दुक तीमंचा दुगोलीये बुरच्छी भाला छुरी कटारी इत्यादि फीर इनोकों साथमे लेके पधारीये अगर ओरते होगा तो अवश्य अपनि विषयके पदाको देखेगा और खरीद करेगा और जो राजकुंवर होगा तो तलवारादि पदार्थ लेगा यह सहज ही मे परिक्षा हो जायगा। ओरतो की लालचा वाला राजा इसी माफीक हुकम लगवा दीया लाखों क्रोडोका व्यय कर सामने सामने दोनो दुकानों कि लैनो तैयार करवादि और उमराव तथा उन च्यारो सीरदारोको साथ ले मैला देखनेको गये. सुरसुन्दर च्यारोको कह दीयाथा कि याद रखीये यहां कोई नापित कि जाल है में करू वैसा ही करना बजारमे प्रवेश होते ही सुरसुन्दर दरवारसे अर्ज करी कि गरीबनवाज यह तलवार हमको ले दीजिये एवं बन्दुक तीमांचा छरी कटारी इत्यादि देखते देखते सब बजारके अन्दरसे पार हो गये. दरबारने सोचा कि नापित झूटा है यह किसी प्रकारसे ओरतो नही है फीर हजामको बुलाके दरबारने हुकम कीया कि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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