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सभा विसर्जन समय आठो मुद्रिकाओ लेके वह च्यारो सीरदार भी अपने मकानपर आगये परन्तु कहा है कि
नराणां नापितो धूर्तः, पक्षिणां चैव वायसः । चतुष्पदां शृगालस्तु, स्त्रीणां धृर्ता च मालिनी ।। १॥
इस नीतिवाक्यको चरितार्थ करता हुवा नापित ( नाइहजाम ) सीरदारोंके पीच्छे पीच्छे मकानपर आया ओर अर्ज करी कि हजुर में आपकि खीदमतमें हाजर हुं मेरे लायक कार्य हो सो फरमावे और एक लाल मुझे भी बक्सीस करावे. सुरसुन्दर ने जबाब दीया कि हजाम ! लालों कोइ झाडोके नही लगती है कि हरेकको दे दी जावे वह तो लालोंके योग्य होते है उनके वहां ही रहती है। नापितने कहा कि खेर आपजो चाहे वह समजे किन्तु एक लाल मुझे देनी ही पडेगी. सुरसुन्दरने कहा कि देनी ही पडेगी तो क्या तुमारे बापने यहां जमा करवाइ है. हजामने कहा कि जमा ही समजीये अगर इस बातमें खांचाताण करेगें तो में आपकि सुन्दर मायाजालकों पब्लिक करदुंगा तो आपको आपका असली रूप धारण कर राजाके अन्तेवर बन चुंघट निकालना ही पडेगा । यह सुनते ही कोपित हो सुरसुन्दरने हुकम दिया कि यहां कोई हाजर है, इस नापितकी सिरपोषी कर दीजिये. यह हुकम सुनते ही सेरसिंह सवासेरसिंह आदि सीपाइओने जुत्तेसे लाठीसे वेदोसे खवासजीकि स्वागत इस कदर करो कि बहुत दिन याद करीया करे अर्थात् खुब जोरसे मार पीट कर वहाँसे निकाल दीया. हजाम अपने घरपर आकं नमः कादिसे सेक कर कुच्छ देरके बाद कंचनपुर नरेश कामसेन राजाके पास आके बोला कि स्वामिन् ! आज तो आपकि सभा एक बडा आश्चर्य देखा था. राजाने पुच्छा कि कोनसा? नापितने कहा कि जो च्यारो सीरदार पधारे थे वह च्यारो ओरतें या
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