Book Title: Mahasati Sur Sundari
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpamala

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Page 31
________________ (२८.) नरूरत है यह सोच आप स्नानमजन कर वस्त्राभूषण धारण कर कम्मरके कम्मरपटातलवार पकेक बुरच्छी ले च्यारो जणे दरवारकि मुलाकात लेनेको राजसभामें गये. साथमें एक लाल भी ले गये थे, उस समय बहुतर खाप तेहोत्तर उमराव प्रधानमंडल और लोकोसे राजसभा चीकारबन्ध भरी हुइ थी उस्के अन्दर सुरसुन्दरादि च्यारो सीरदार खडे खडे सीधा ही दरबारके पास जाके खडे हो गये. दरबारने साचा कि यह कोई मेरे मातेत तो नही है कारणके मुजसे सीलामी या मुजरा नही कीया तो क्या कोइ मेरे बराबरी राजाओंके पुत्र है; परन्तु आये हुवेको सत्कार देना मेरी फर्ज है आतेके साथ ही राजा सिंहासनसे उतर हाथसे हाथ मीलाके अपने पास बेठा लोया. सुरसुन्दरने भी मुजरा कर वह लाल निजर करी. दरबार उस लालको देखते ही समज गया कि यह कुंवर कोइ सामान्य घरके नही है जो मेरे राजभरमें पसी लाल हमने आजतक देखी भी नही है तब दरबार धीरेसे पुच्छा कि आप कहांसे पधारे है मेरे योग्य कार्य हो वह फरमावे. सुरसुन्दरने उत्तर दीया कि पसेही फीरते हुवे आपके दर्शनार्थी यहांपर आगये है। दो तीनवार पुच्छने पर भी अलम्टलम् ही कीया. दरबारने आग्रहपूर्वक पुच्छा कि आप सच क्यों नही फरमाते हो, क्या हमारेसे कोइ गुप्त रखने की वात है. तब सुरसुन्दरने कहा कि नही साब आपसे क्या गुप्त रखे हम खुद ही गुप्तपणेसे नीकल आये है वास्ते आपसे पहले यह करार कीया जाता है कि आप कहीं भी प्रकाश न करे. राजाने विश्वासपूर्वक कहा कि आप निर्भय रहै तब कुंवरजीने कहा की हम चम्पानग. रीके जयशत्रु राजाके च्यारे पुत्र है. दीवानसाबकी खटपटसे हम गुप्तपणे वहांसे निकल गये कोइ भी राजमें रहेके कुच्छ रोज गुजारा करने कि गरज आपके यहां आये है राजा बहुत खुश हो उनों के खरचेके लिये प्रत्येक कुंवरको दो दो सुवर्ण मुद्रिका नियत कर दी. www.umaragyanbhandar.com Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat

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