Book Title: Mahasati Sur Sundari
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpamala

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Page 29
________________ (२६) म्दरीने अपने पतिके वन थे उसको पहन कर मदि वेशको धा. रण कर बाकी भी तीनोको मर्दि वेश धारण करवा के एक लाल अपने हाथमे लेके चली बजारमे उसी सेठकी दुकानपर आके बोली क्यो सेठजी आपको लाल खरीद करनी है शेठजीने सोचा कि मेरे कानोमे कुंडल जलहल करता हो और सेठाणीके नाकमें नथ न होतों चन्द्रके पास राहुकी माफीक एक शय्यामे सुती हुइ सेठाणी झाखीसी दिखेंगा वास्ते यह तीसरी लाल भी ठीक आगह सेठजीने कहा कि वतलाइये कोनसी लाल है सुरसुन्दरीने कहा कि लालका क्या देखना है सवा करोडी लाल है पहला यह बत. लाइये कि वह वढीया लाल आप खरीद कर सकोगे या नही अगर खरीद न करसको तो हम पचास लक्ष दिनारमे गीरवे. भी रख सक्तीहु । इसपर सेठजीने शोचा के पहलेके दोनो करतो यह कुच्छ चलाक मालुम होती है परन्तु मेरे आगे इस्की क्या चल सकेगा. लाल गीरवे रखना ठीक है कारण कि इस्का कोई तोल मूल्य तो है ही नही जब छोडानेको आवेगा तब रकम तो ले लेगे और कमि लाल सुप्रत कर देगें इस हेतुसे सेठजी बोले कि इतना मूल्य तो हमारे पास नही है किन्तु गीरवे रख सक्ते है वस एक चीठी सेठजी लिखवालि एक सुरसुन्दर सेठ. मीसे लिखवालि. पचास लाक्ष दिनार दो आनाके सुतसे ले लीया और लालसेठजीको देदी एक अच्छा खानदानका मुनिम रख उसे कहा कि जावो कोइ अच्छा सुन्दर विशाल मकान खरीद करो या किराये लेलो. पुन्योदय मुनिमजी मकानकी तलासी करते थे इतने मे तो एक पांच खंडवाला विशाल सुन्दर मकान कोई दिशावरीका वीक रहाथा उस्की मांगगी च्यार लक्षकी हो रही थी. इतने में मुनिमजी पांच लक्षकी बोली करी फोर दुसरा कोई न बढनेसे वह मकान मुनिमजीके रहा. मुनिमः मीने कहा की सेठ सुरसुन्दरजीके नामसे लिख लिजिये, मकान www.umaragyanbhandar.com Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat

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