Book Title: Mahasati Sur Sundari
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpamala

View full book text
Previous | Next

Page 30
________________ (२७) खाली करवाके द्रव्य दे दीया. यह बात सुन बहुतसे वैपारी लोकोने पुच्छा कि यह सुरसुन्दरसेठ कहाँका है. मुनिमजीने कहा कि यह चम्पानगरीसे आये है यहां वैपार करेगें. वेपारी लोगोने बडाही आदरसत्कार कीया. च्यारे ओरतोंने मदिरूपसे अपने ब्रह्मचर्यव्रत का रक्षण करती हुइ उस मकानके अन्दर निवास कर दीया. दो ज्यार नोकर चाकर रख बजारमें दुकान खोल दी. मुनिम गुमास्ता अच्छी तरहसे घूमधोखारबन्ध दुकान चालनी शरु कर दी च्यारो सेठ हो गये वह प्रतिदिन नगरके बहार हवाखोरीकों जाया करते ये. एक दिन मुनिमजी भी साथमे थे, बाहार जाते एक सोदागरके पास च्यार अश्व रत्न देखा. सुरसुन्दर शेठने कहाकि मुनिमजी आप इस सोदागरसे पुच्छीये क्या यह अश्व वेचते है एसा हो तो अपने खरीद कर लो. मुनिमजीने किंमत करवाइ तो च्यारोके पांच लक्ष दिनार किंमतकी मागी. अलबत्त मुनिमजी वैणक जातिके थे उसने सोचा कि वैपारी लोगों के इतना खरचेसे अश्व लेना कीसी प्रकारसे लाभदायक न होगा यह वात सेठजीसे अर्ज करी. सेठजीने कहा कि क्या मुनिमजी दाम आपके घरसे देने पड़ते है. यह सुन मुनिमजीने सोचा की मेरेको क्या नुकशान है मेरे पुत्रके लग्न समय बदोलीमें भी तो काम आवेगा पांचलक्ष द्रव्य देके च्यारो अश्व खरीद कर लीये. सुरसुन्दरादि च्यारो शेठ एलशुभे हवा खोरीको उसी अश्व रत्नपर स्वार हो प्रेकटीस करना शरु कीया. से ज्यार मासमें वह इतना तो अभ्यास कर लिया कि पांच पांच कोस जाके आ जाते थे. यधपि मदोंकि माफीक ओरतो अश्वपर नहीं बेठ सक्ती, परन्तु अभ्यास एक एसी वस्तु है कि कठीनसे कठीन कार्यको भी साधन कर सकते है. एक दिन सुरसुन्दरने विचार कीया कि अपने तो सुखमें है किन्तु अपने सासु सुसरे और च्यारो सीरदार न जाने कीस हालतमे है उसकि तपास तो अवश्य करना चाहिये. इस कार्य के लिये कीसोसे प्रीति करने कि www.umaragyanbhandar.com Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat

Loading...

Page Navigation
1 ... 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62