Book Title: Mahasati Sur Sundari
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpamala

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Page 24
________________ (२१) घडीभर ज्वार देगें बस इतनेमे वह सब सदन करते उस मूली छाणाको वहां डाल के उस पूरांणी ज्वार को लेके ग्राममे चले एक बुढीयासे घंटी जाची किन्तु चकी चलाना कौन जाने उनोने अपनि नीन्दगीमे चकी देखी भी नहीं. परन्तु कर्मराजा सब काम कराते है! पाठकों जमाना हालमे महात्मा गांधी जैसे अपने हाथो से अनाज पीस रोटी बनाके खाते है यह नसियत इस जगाहा बडी कामकी है। खेर उनोने उस पुरांणी ज्वार का दलीया बनाया घतदुद्ध दही सकर मशाला पाक पकवान तो दूर रहा परन्तु उस दलीयामे नमक तक भी कहांसे लावे.जबदलीया तैयार हो गया तब उस बुढीयासे जीमने के लिये थाली लोटा मांगा तो वुढायाने कहा कि मेरे ओरडे के तालाकि कूची मेरी वह ले गइ है वास्ते थाली लोटी मेरे पास नहीं है यह भैसके भांटा देनेका मटीका बरतन है चाहे तो इसे ले लिजिये । सोनेके थाल चांदीके कटोरे सोने चांदीके लोटे गीलासे के उपभोग करनेवाले आज • मटीके बरतनसे भी संतोष करते है अरे धनाच्यो इस बख्त यह सोचोकि सबक एक दशा नही हुवा करती है वास्ते उस ठकुराइ को बखतमे कुच्छ सुकृत करलो नही तो आपका गमंड एसे समय पर रहनेका नही है खेर जैसे तैसे भी अपने पापो पेटको भरा। बाद दूसरे दिन भी यह ही गति हुइ इसी माफीक महान् दुःखका अनुभव करते हुवे प्रतिदिन नये नये ग्राम देखते जा "हे थे. सुरसुंदरिके पास लालेतोथी परन्तु यह विचक्षण यह सोचाकि इस बख्त छोटे छोटे गामडे है यह कोई मेरीलालेका ग्राहाक तो है नहीं और अबी वी जावेगा तो दोचार आनोमे वेच खाजावेगा और दो चार आनोसे होनेवालाभी तो क्या है हां कोई बहानगर आवेगा तो इसे बेचके हम सब सुखी होगें इस विचारसे दरकुचे दर मजले चले जा रहे थे उन महाशयोका शरीर मानो कजलसे भी श्याम पर गया था हजामतके केसे योगियोंकि माफक बढ गये थे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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