Book Title: Mahasati Sur Sundari
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpamala

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Page 22
________________ २ (१६) दुष्ट कर्मों का नाश कीया था. और भी अवतारोक पुरुषों ने भी घोर संकट को सहर्ष सहन कीया था तो आप क्यो इतना दुःख करते है कवियोने भी कहा है कि " हिम्मत किंमत होय विन हिम्मत किंमत नही. ज्याने आदर करे न कोय रद्दी कागद ज्यु राजीया" मला आप सोवीये क्या रूदन करने से अपना संकट चला जावेगा इत्यादि दिलासा दे देके रहस्ते चला रहीथी इस दुःख कि खपर भगवान् सूर्यको भो मील गइ थी वह भी अपना प्रकाश उदयाचलपर चिलकाने लग गया मानो सेठजी के दुःखमें सहायक बनके ही न आया हो! अब सूर्य कि उगाली होतेही सेठजीने सोचा कि कलके तो सब भूखे है परन्तु आजके लिये क्या उपाय करना चाहिये क्यो की हम कोसीके महमान तो है नही कि जाते ही भोजन करवा देगा च्यारे पुत्रोको बुलाके कहा पुत्रोने भी सोचा कि अब क्या करना ? बहुत देर विचार करके सुरसुन्दरीने कहा कि क्या करे क्या करे क्यों करते हो इन सेठ सेठाणीजी को तो धीरे धीरे चलने दीजिये और अपुन माठो जनें इस जंगलसे इंधणवलीते की मूलीये बन्ध ले तांके भागेके ग्राम मे उसे विक्रय कर उदर पुरणा करेगे यह बात सबने मंजुर कर एक पाहाड कि आगोरमे गये वहां देखा जाये तो बडे बरे कटक झारथे उसके कटें भागने में इतनी तो तकलीफ हा कि मानो एक शूली सी वेदना हो रही थी परन्तु करे क्या पेट तो भरना ही परता है कविने कहा है कि-शीशको शोभाको केश दीये, दोय, नयन दीये जिन जोवनकों, पन्थ चलनको दोय पाप दीये, दो हाथ दीये दान देननको, कथा सुननको दोय कान दरीये, एक नाक दीया मुख शोभनको कर्मराज सब ठीक दीये पण एक पेट दीया पतसोवनको ॥१॥ और भी कहा है कि "हाबी हुकारो हाजरी चाकर वेगार और वेठ-देश दिसावर नोकरी, मब हो पेट को भेट" इत्यादि दुनियो मे सबसे निच Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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