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काम भी यह पापी पेट करा सकते है कहांतक उस दुःखं कि वात कहे मण मण मोती पहरती, सोने भरती भार, वह नंर जंगल विचमे, दुःख सहते निरधार " ज्युं त्युं कर उनोंने छाणे लकडी एकठी करी परन्तु उसे बन्धे कीससे तब ओरतोंने तो अपना आदा चीर फाडा और मर्दोंने पगडी से आदी पगडी फाडी छाणों की पोटो व्यारो ओरतो के सीर पर और लकडीय का मूली मर्दों के सिर पर उठाइ । पाठकगण ! सोचिये जिस भाइयों के भँवरीये पढोमे तेल फूल अन्त्र के साथ श्रृंगार और जिस युवा ओरतों के विशाल लम्बा कोमल बालों का अमूल्य रक्षण और सिरपर रत्नजडित के बोर पटी चंद सूर्यादि गहनों से भूषीत थे वहाँ आज छाणे लकडीयोने अपना मकान बना रखा है धिक्कार है कर्मों तुमको कुच्छ सरम भी नही है. करीबन् इग्यारा वजेकी टैम हो गइ है सूर्य ने अपना प्रचंड तापको क्रूर बना रखा है दो दिनों के भूखे प्यासे है पैरो में उनके पाणी छुट रहा है रक्त की धारो चल रही है पग पगपर मुर्च्छा आ रही है निर्दय मूमिने भी अपना प्रबल तापसे रेती को तपा रखी है इस संकट पन्थ को पीछाडी छोडते छोडते एक छोटासा ग्राममे बह जा पहुंचे वहां पर कीसानोंके कुच्छ घर थे सब ग्राममें वह छाणा लाकडी ले के फीरे परन्तु वह कीसान लोग मूल्य देके बलीताकबी लीया भी नही था उनका तो घर भी बलीतारूप ही है उस समय भी उन सबको निरास होना पडा था. इतना ठीक हुवा कि asiपर कोइ वणिक पुराणी जवार वेचने को एक गाडी लाया था वह उस दशो जीणोर्को निराधार देख विचार किया कि यह कोइ भाग्यशाली आदमि है किन्तु कीसी कारणसे इनोको संकट पडा होगा यह सोच दीलमें दया लाके उसे कहा की हे बन्धुओ ! इस लकडी छाणो की तो हमे जरूरत नही है किन्तु तुमारी दीनता पर हमे करूणा आति है इस काष्ट को यहां डाल दो हम तुमको
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