Book Title: Mahasati Sur Sundari
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpamala

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Page 18
________________ (१५) गइ । सुरसुन्दरी पहलेसे सात लालो (रत्न) प्रत्यक सवाक्रोड कि किंमतकि थी उसे अपने पुरांणे वस्त्रके अन्दर पकी बन्धके वेसे ही पुराणे वत्र धारण कर रखा था चीपडासीयोंने सब घरके मालखजांनोपर सील कर सेठजीको और सेठजीके सब कुटुम्भवालोको घरसे निकाल दीये । घर दुकानों सरकार अपने कबजे कर ली विगर भोजन किये भुखे सव लोग नगरीके बाहार आये इतनेमे ग्यारा बजे चीठीोंमे दिसावरी समाचार आये कि सेठनीकी दीसावरकी दुकानोपर गुमास्तारोने उंधा ताला लगा के माल ले भाग गये है श्यामका च्यार बजे समाचार मीला की समुद्र मेचलनेवाली सेठजीकी जहाजो पाणीने डुब गइ है सजनो आठ वजेसे च्यार बजे याने छे गाटेके अन्दर सेठजीका एक अबज और पैतीस क्रोड सोनइयाका मंमला खलास हो गया था. यह कथा आम दुनियोंको बोध कर रही है कि कोई भी इन्सान धन मद न करे धन पाके मुजी न बन बेठे धनके लिये अकृत्य न करे. यह लक्ष्मी चंचल है अगर कहा जाय तो एक कविने लक्ष्मी कों उपालंभ दीया था कि हे वैश्या तेरी यह ही प्रीति है कि जीस्के घरमे वन्सपरम्परासे निवास कीया जो पुरुष तेरे लिये तनतोड महनत करते है धर्म कर्म शरीरकी दरकार नहीं रखते है उस चीरकाळकि प्रीतिकों छ घंटेभे तोडतों क्या तेरे दीलमे तनक भी रहमता नहीं आई इस वास्ते ही महात्मा लोगोंने तेरा तिरस्कार कीया हे क्या हे लक्ष्मी और भी तुं दुनियोंको मुह बतलाने लायक रही है इसपर लक्ष्मीने कहा कि हे कवि जिनोका वन्सपरम्परसे चला भाता रवेज माफीक कार्य करनेमे मुग्ध कवि क्यो खीज उटता है क्या यह हमने नवा रवेज डाला है या www.umaragyanbhandar.com Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat

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