________________
(१३)
जब आप नौजिनोंका एक मत्त हो गया तो में कोइ आपके मत्तसे खीलाप नही हुँ । सुसराजीने कहा कि कपाली कपाली मत्ती भिन्न भिन्न होती है वास्ते तेरे मगजमे आयाहो वह तुंभी कहे ? इसपर सुरसुन्दंगने कहाकि आप नौजीणोके जो वात जची है वह ठीकहीं होगा कारण आप सब बुद्धिशाली हो में तो सबसे लघु-बालक हु परन्तु यह वात मेरे समममे नही प्राति है । मे यह समजती हु कि इस समय हम श्राठोकि युघकावस्था है अगर कैसाही दुःख क्यों न आवे ! हम सब मजुरी करके भी बाराह वर्ष निकाल देगें फीर सुखही सुख है। अगर इस समय सुख भोगवीया जाय तो वृद्धावस्था में एक तो अवस्था वृद्ध दुसग निर्धन तीसग हुःख यह त्रीपुटी के मारे अर्तध्यान गैद्रध्यानसे मरके दुर्गतिमे जावेगे तो अपुन सब चीरकाल तक दुःखो से मुक्त न होगे वास्ते मेरा यह मत है कि इस युवक वयमे दुःख भोगवना ही ठीक है. इस प्रज्ञावन्ती का शब्द श्रवण कर नौजीणो के मगजमे इस सलाहको स्थान मील गया-ओर बीलेकि यह वात ठीक है. इस बख्न जैसे तैसे ही कर्म भुक्तना ठीक है । बस दशों जिणों का एकमत्त ही ठराव पास हो गया गत्रीमे सेठजी के पास देवी पाई सेठमीने कह दीया कि देवी, हमलोग इस बख्तमे खुशीसे कर्म भोगव लेगे । देवीने कहा कि सेठजी मे भी श्रापकों यही सलाहा देती कि
आपको युवक वयमे कर्म सहन करना ठीक है जिस्मे मेरा भी कुल वापिस अच्छा मजबुत बना रहेगा. हे शेठ ! यह तुमारे लघु पुत्र कि ओरत सुरसुन्दरि बडी बुद्धिवान् है इस्के कहने माफीक चलेगें तों तुमको फायदा होगा. अव मे जाति हुँ आप सावचेत रहना । शेठजीने
www.umaragyanbhandar.com
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat