Book Title: Mahasati Sur Sundari Author(s): Gyansundar Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpamala View full book textPage 8
________________ ( ५ ) था. और योगि महात्माओोके योगाभ्यास श्रासन समाधि ध्यानमें परम समाधि स्थान पुर्णभद्र नामका वगेचा था. उस चम्पानगरीमें धराधिप सुरवीर धीर पराक्रमी भूजबलसे वैरीगंजन प्रजापाल न्यायावतार धैर्यवन्त गंभीर उदार दानेश्वरी जिस्की दीमाग दयासे भरी हैं उज्वल यश चौतर्फ विश्वव्याप्त है वैरी भूमिया जिस्के चरणकमलोंमे सदैव सिर झुकाये करते है राजतंत्र चलानेमे बडाही कुशल है स्वतंत्र भूमिभोक्ता है अनाथोके सहोदर ईश्वरभक्त स्वसंतोषी प्रबल प्रतांपी तेजस्वी प्रादयनाभसे प्रपनि श्राज्ञाको भू व्याप्त कर प्राज्याकों सुख समुद्र और निर्भय करनेवाला चक्रवर्त्ततूल्य जयशत्रु नामका राजा राज करता था. गजाके गृहश्रृंगार रूप में रंभा चातुर्य लावण्य सर्वागसुन्दराकार पतिवृता व्रतपालक उदारचित और गृहकार्यमें दक्ष धारण नामक राणि थी. उस राजाके च्यार बुद्धिका निधान श्याम, भेद दंड अर्थोपार्जन भर राजाके मनको जाननेवाला सन्धीकार्य रहस्यकार्य गुंजकार्यमें नेक सलाह देनेवाला राजतंत्र चलानेमें कुशल प्रज्याप्रेमी देशभक्त मतिवृद्धन नामका प्रधान था. उस नगरी अनेक धनाढ्य उदार दयावान् स्वस्वधर्ममें निश्चल परिणामि षट्कर्मकर्त्ता नगरसेठ इप्भसेठ भार्डबी कोटम्वी श्रादि छत्तीसो काम अपने अपने पैसामें प्रवृतमानथे, जीस्मे भी धनदत्त नामका सेठ बडा ही प्रमेश्वर था जिस्की नाम्बरी देश दिशावरोंमें प्रज्ञात्तयी राजासे भी बडा आदरसत्कार प्राप्त कीया था, वैणज्य वैपारमें भी अग्ने भाग सेठजीका रहता था. न्याति जातिमे भी सेठजीका मान कुच्छ कम नही था अर्थात् पहले सेठजी कों बुलाया जाता था जब सेठजी बजा · Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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