Book Title: Mahasati Sur Sundari
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpamala

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Page 13
________________ (१०) हाथका नहि कि कीसीके कर्मोसे बचा सके। देविने उत्तर दीया कि सेठजी आप जरूर मेरे उपासक हो मेरा कर्तव्य है कि मेरेसे बने वहांतक में आपकि सहायता करू परन्तु क्याकरू मे इस कार्यमे लाचार हुं आपकातो क्या परन्तु में मेरेभी कर्मोको नही छोडा सक्ती हु। तोदूसरोके लिये तो मे करही क्या सक्ती हु अपही वतला ये तीर्थंकर चक्रवर्तोके तो हजारो लाखो क्रोडो देवताओं सेवामे रहतेथे वहभी उन महान् पुरुषोंके कर्मोको नही छुडा सके तो मे आपके कर्मोको केसे छुडा सकु । बस । सेठजीको देवीकि श्रासासे निरास होनाही पडा. फीरभी सेठजी विचारके बोला कि हे देवी अब इसका कोइ उपायभी हैं । देवीने सोचके कहाकि सेठजी दूसरातो कोइभी उपाय नही हैं अगर हेतो इतनाकि इस कर्मोंके उदयकालको कुच्छ मुदित अागी पीछी मे कर सक्ती हुँ जैसे कीसी कीसांनके साहुकारका करजा है वह साहुकार कहता है कि मै इसी बख्त रूपैये लेढुंगा इसपर कोइ तीसरा मध्यस्थ कहे कि दो च्यार मासके लीये मुदत है तो एसा बन सक्ता है कि दो च्यार मासकि मुदत मीले इसी माफीक आपके कर्मोदय कालकों मे मुदित पलटासक्ती हु किन्तु विगर पैसे मध्यस्थ फारकती नही कराशकते है इसी माफीक विगर भुक्ते कर्म नही छुटते यह केवल शेठजीको विश्वासके लिये ही कहा था यह सुनके सेठजीने सोचा कि खेर शुमे में मेरे सब कुटुम्बवालेको पुच्छके तुझे जबाव देउगा यह कह कर देवीकोतो विदा करी पीच्छे सेठजी उन सोचरूपी समुद्रमे पडके अर्णवका मथन करना सरू कीया कि हे ईश्वर ! मेरे सिरपर यह क्या आफत डारी है मैं स्वप्नमेभी यह नही जानता था कि मेरे इस स्वतंत्र सुखोमे कोइ बादा डाल स www.umaragyanbhandar.com Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat

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