Book Title: Mahasati Sur Sundari
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpamala

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Page 12
________________ (६) देवी हु और कीसी कार्यवसान्ही आइ हु आप अगर सावचेत होगये हो तो में कुच्छ कहना चाहाती हु. सेठजीने कहाकि मे ठीक सावचेत हुं आपको कहनाहो वह कहदिजिये तब देवीने कहाकि मे हमेशों मेरे उपासक भक्तोकि साहित्य करति हुं कुशलता चाहाति हुं। परन्तु आज मेरे ज्ञानद्वारा यह जाननेमे आये हे कि आपके कीसी भवोंके उपार्जन कीये हुवे द्वादशवर्षोंके दुष्ट कर्मोदय होनेवाले है इसकि इतला देनेको में आपके पास प्राइहु इस बातका मुझेभी वडाभारी फिक्र है जीससे मेने बहुत उपाय सोचा परन्तु एसा कोंइभी उपाय मुझे नही मीला है कि में आपको कष्टकर्मोसे बचा सकुं। अब आप सावचेत हो जाइए । यह सुनतेही तो सेठजीका छकाछुट गये तारांणकसगये याने होस उढगये अर्थात् सेठजीका चैग पूर्णीमाके चन्द्रके माफीक था वह अमावाश्यकि रात्रीके माफक श्याम पड गया था जो लबीसी धुध वडी हुइथी वह गर्भमुक्त औरतोकि माफीक शोषन होगइ थी सेठजीके निश्वासःकि तर्फ देखा जावे तों इतनितो दीलगीरी पाइ जातिथी कि सेठजी बेहोस होगयेथे । देवीने कहाकि सेठजी गभगते क्यो हो तीर्थंकर चक्री और महान पुरुपोंकोंमी अपने कर्मभोगवने पड़े थे तो इस संकटकि बख्त आपको हीम्मत नहि छोड देना चाहिये इत्यादि कहेनेसे सेठजीका दीमक कुच्छ हिम्मतकि नर्फ हुवा सावचेत हो बोला कि हे देवी मेंने मेरी उस्मरतक तेरी पूजा करी नैवद्यादि सुन्दर पदार्थ चढाये और अबभीमें तेरा उपासक हुं तो तेरी मोजुदगीमे मेरी यह दश होना क्या सोचनिय नही है क्या इसे तेरीभी कमजोरी न पाइ जायगा इत्यादि सेठजी पवनपटुतासे देवीको बहन उपालंभ दीया परन्तु यह कार्य कोई देवके Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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