Book Title: Mahasati Sur Sundari
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpamala

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Page 11
________________ (८) व्वाबाद सुखोका अनुभव करोगें किन्तु कीसीके साथ वैरभाव निन्दा ईर्षा मत रखो कारण बन्धा हुवा कर्म न जाने कीस समय उदय होगा ओर उसके कटुक रस कीस रीतीसे भोगवीये जावेंगा इत्यादि वापर सुज्ञ मनुष्योंको ध्यान अवश्य देना चाहिये । अब आप ध्यान देके सेठजीके-कर्मफलोंको श्रवण करीये । ___एक समयकि जिक्र है कि सेठजी अपने मोतिमहल जोकि जिस कम्मरेमे सोना मोतियोंका काम हुवा छप्परपिलंग सोनेकी संकलो लगी हुइ है गादीतकियेकी कोमलता मक्खनके माफीक ओर खसखसकि तटीयोंसे सुगन्धी ओर शितल पवनकि लेहरो आरहीथी पीकदान पासमे पडा हुवा है रात्रीमे अन्त्रके दीपक जल रहे थे रत्नजडतकि दांडीवाला फैका हाथमे धारण कर सेठाणीजी खडी थी उस अवस्थामे सेठजी अपने महलमे छप्परपीलंगपर लेटे हुवे थे जब दश बजेकि टैममे सेठजी के नयनोमे निंद्रा निवास करने लगी तब सेठाणीजी अपने महलमे चले गये करीबन बारहा वजेकि टैमथी सेठजीसुखमे शय्यन कीये हुवे थे दीपक सेठजीके पहरा देरहाथा. इतनेमे तो करकंकणका झंणकार कटीमे खला ओर पावोमे नैवर मंझणके अवाजो दमकती भाल चमकती चुदड शोलह श्रृंगार करी हुइ देवस्वरूप दीव्वतेजवाली महिला सेठजीके सिरकि तर्फ खंडी हो बोली क्यों सेठजी आप सुते हो या जगृत. सुखी सेठजी बोलेभी क्यों पुन: दोतीनवार जोरसे पुकार करी इतनेमे जजकके सेठजी जगृत हुवे देखा जावे तो कोइ ओरत खडी है सेठजीने कहा कि तुम कोन हो और इस समय हमारे महलमे कीस वास्ते प्राइ हो ? उत्तरमे उस ोरतने कहाकि सेठजी में आपकि कुल www.umaragyanbhandar.com Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat

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