Book Title: Mahasati Sur Sundari
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpamala

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Page 9
________________ रसे आते जाते थे उस समय अच्छे प्रतिष्ठित लोक अपनि दुकानोंसे खडे हो सेठजीको आदर दीये करते थे. यह शोभाग्य सेठ धनदत्त को क्यो मीला था कि सेठजी सबके कार्योमे तन धन मनसे मदद करते थे अपना कार्य छोडके भी परकार्य में पहले सुधारा करते थे. इत्यादि गुणकर सेठजी अपने पूर्वजोकि माफीक यशः कीर्ति का अच्छी तरह रक्षण कीया था सेठजी के यशोमति नामकि भार्या थी वह सलाहमें मित्रतूल भोजनमें माता तूल शय्यामे भार्यातूल शरीररक्षमे वैद्यतूल्य दानमे वैशमणतूल्य. दयामें रामतूल्य. सर्वांग सुन्दराकार गृहश्रृंगार लक्ष्मी अवतारादि औरभी महिलावोंके गुणसंयुक्त थी. पूर्वोपार्जन किये पुन्योदय सेठजीका गृहवास माने स्वर्ग मे देवतूल्य था. सेठजीके चम्पानगरीमे और दीसावरोंमे वेपार च्यारं प्रकारकेगीणमा, तूलमा, नामपा, परक्षमा क्रिरियाणसे और समुद्रमे जादा जो आदिसे चलता था पुन्योदय सेठजीके पास नीनाणवे (६६) क्रोड सोनइयोकि लक्ष्मी जमाथी लक्ष्मी होनेपर अगर पुत्र न होतोभी संसारमे सुख नही मीलता है परन्तु सेठजीके क्रमशः च्यार पुत्र रत्नकी प्राप्ती हुइथी उनोके नाम महिपाल. रायपाल. तेजपाल. और सुरपति. वह च्यारो पुत्र लिखेपडे नितिज्ञ अपने पिताश्रीकि आज्ञा पालन करनेमे वडहीदक्ष वेपारमें हुंसीयार युवकवयमे आनेसे वडे वडे साहुकारों कि वर प्रधान सुर सुन्दरियोंके सादृश लिखी पडी महीलाोकि चौसटकालामें कुशल हुनरकार्यमें पटुत्त बचपनसे पाइ हुइ तालिम विनय भक्ति शुश्रषामे प्रवीण महिला गुणसंयुक्त च्यार कन्याओको च्यार पुत्रोके साथ धर्मलग्न कर दीया जेसे महीपालको Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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