Book Title: Mahasati Sur Sundari
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpamala

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Page 5
________________ (२) कथा नम्बर १ सुरसुन्दरी महासती-इस रसीक कथा के अन्दर संसार कि अस्थिरता लक्ष्मी कि चंचलता संकट में धैर्यता और पुरुषार्थसे कार्य सिद्धि का चित्र बतलाये जावेंगे. असंख्याते कोडोनकोड योजनका एक राज होता हे वेसे चौदाराजप्रमाण यह लोक है जिस लोक के तीन भेद है. उर्ध्वलोक जिस्मे वैमानिक देव या सिद्ध निवास करते है अधोलोक जिस्मे नारकि के नैरिया या भुवनपतिदेव निवास करते है तीर्यग्लोक जिस्मे व्यंतरदेव ज्योतिषीदेव तथा मनुष्य तीर्यंच निवास करते है उस तीर्यग्लोक में असंख्यद्वीप समुद्र है जिस्मे अढाइद्विप और दो समुद्र एवं पैतालीसलक्ष योजन लम्बा चौडा गोलाकार क्षेत्रमे मनुष्य रहेते है बाकीके द्विपसमुद्रमे तीर्यच जीव है. अढाइद्विपमे जो जम्बुद्विप नामका द्विप है वह एकलक्ष योजनका लम्ब चोडा है गोलचन्द्र-रथके पँया-चक्र-कमलकि कणिका और तेलके पुँवाके आकारहै जिस्की परधी ३१६२२७ योजन तीन गड़ एकसो अठाइस धनुष्य साढातेरह अंगुल एक जैव एक जू एक लीख छेबालाग्र पांच व्यवहारिये परमाणु जितनी है उस जम्बुद्विपके अन्दर कर्मभूमि मनुष्य रहने के तीन क्षेत्र है भरतक्षेत्र ,एखयक्षेत्र, महाविदहक्षेत्र जिस्मे हम जो जीस कथा को लिखते है वह भरतक्षेत्रकि है. भरतक्षेत्र के मध्यभागमे वैत्ताड्यगिरिनामका चंदीका पर्वत है जिनसे भरतक्षेत्रका दो विभाग माना जाता है यथा- उत्तरभरत और दक्षि www.umaragyanbhandar.com Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat

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