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आलोचनात्मक मूल्यांकन
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वापस ला सकता है। राम ने कहा यदि वह अपना हाथी देता है तो वहीं इस मित्रता का कारण हो सकता है। राम ने दूत के साथ अपना आदमी भेजा। बालि के राजमंत्री ने उससे कहा- राजा वालि हाथी नहीं, असि प्रहार देगा। टूल ने वापस आकर, कानों को कटु लगनेवाले वे शब्द राम से कहे। राम स्वयं को कठिन स्थिति में पाते हैं, इधर कुआ उधर बाई लक्ष्मण और हनुमान् उस पर चढ़ाई करते हैं । बालि-बध ।
76 वीं संधि
राम लंका पर चढ़ाई के लिए प्रस्थान करते हैं। विभीषण रावण को समझाता है। सेना और बुद्ध का वर्णन ।
1778 वीं संभि
हनुमान् केन लौटने पर राम की चिन्ता विभीषण उन्हें समझाता है। युद्ध का वर्णन रावण विभीषण को बुरा-भला कहता है। युद्ध का वर्णन लक्ष्मण के द्वारा रावण का वध । मंदोदरी का विलाप । विभीषण जी पश्चात्ताप करता है। उसके अनुसार रावण का एक ही दोष है कि उसने जैनधर्म का आदेश न मानते हुए परस्त्री का अपहरण किया। राम रावण का दाह संस्कार करते हैं। युष्पदन्त का कथन है कि दूसरे की स्त्री से राम होने पर भी हलके समझे जाते हैं। विभीषण को राजपट्ट बांधा जाता है।
79 वीं संधि
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उसके बाद राम पृथ्वी का परिभ्रमण करते हुए, कोटिशिला पहुंचते हैं। लक्ष्मण कोटिशिला उठाते हैं। दोनों भाई गंगा के किनारे-किनारे चलते हैं और उसके उद्गम स्थान पर पहुं बते हैं। यहां उन्होंने पटमंड ताने लक्ष्मण ने समुद्रपर्यन्त अपना रथ हाँका ये नयध देश आए। वहाँ उनका अभिषेक किया गया और भी कई कीमती वस्तुएँ उपहार स्वरूप प्राप्त हुई। समुद्र के किनारे-किनारे जाकर वर को फिर सिंधु को जीतकर प्रभास तीर्थ को जीता। फिर लेण्ड दिशा के समस्त शत्रुओं को जोता विजयार्ध की दोनों श्रेणियों को जीत कर इतमातंग विद्याधर की कन्याएँ पग की देव दिशा के म्लेच्छा खंड को जीतकर भूनिमंडल पर अपना राजदंड घुमाकर वे अयोध्या लौट आए। वहाँ राजा राम लक्ष्मण का अभिषेक हुआ। वे दोनों इन्द्र को लीला करते हुए रहने लगे। उन्हीं दिनों शिवगुप्त मुनि का नंदनवन में आगमन होता है। वे जैनधर्म का उपदेश देते हैं। जैन दृष्टिकोण से वे संसारचक्र का विचार करते हैं, दूसरे दार्शनिक के मतों का खंडन भी उपदेश सुन कर राम श्रावक व्रत धारण कर लेते हैं। लक्ष्मण ने एक भी व्रत ग्रहण नहीं किया। दशरथ के मरने पर भरत और शत्रुघ्न साकेत में अधिष्ठित हुए। राम और लक्ष्मण वाराणसी गए। राम का पुत्र विजयराम हुआ, उनके सात पुत्र और हुए। लक्ष्मण का पुत्र पृथ्वीचन्द्र था। उसके और भी पुत्र हुए। बहुत समय बीतने पर पृथ्वी पर अनिष्ट लक्षण प्रकट हुए। राम ने दान दिया और जिन पूजा की। लक्ष्मण की मृत्यु। राम और सीता का शोक राम ने चार घातिया कर्मों का नाश किया, देवताओं ने पुष्पों की वृष्टि की राम को केवलज्ञान प्राप्त हुआ। परमावादी लोग यही कहते हैं कि धन किसी के साथ नहीं जाता। धरती रूपी राक्षसी ने किसकिस को नहीं खाया !
रामकथा की पृष्ठभूमि
पुष्पदन्त की रामकथा में कथा कम, काम्य-तत्त्व अधिक है। कवि मनुष्य की भौतिक इच्छाओं को निस्सर रता, तप त्याग और नैतिक मूल्यों का चित्रण तत्कालीन सामन्तवादी पृष्ठभूमि में करता है। जीव का अपना कर्म ही उसके सुख-दुःख, बन्धन और मोक्ष के लिए उत्तरदायी है। चूंकि कर्म का कर्ता और