Book Title: Kundakundadeva Acharya Author(s): M B Patil, Yashpal Jain, Bhartesh Patil Publisher: Digambar Jain Trust View full book textPage 9
________________ आचार्य कुंदकुंददेव अज्ञानी अनादि काल से अज्ञानं के कारण बहिर्मुख दृष्टि से ही निरीक्षण करता रहता है। अतः महापुरुषों का जीवन चरित्र भी बाह्य घटनाओं के आधार से ही जानना चाहता है । इस प्रवृत्ति से वास्तविक जीवन का स्वरूप समझ में नहीं आता और शाश्वत सुख का प्रयोजन भी सघता नहीं है। इसलिए महापुरुषों का जीवन चरित्र अंतर्मुख दृष्टि से ही देखना चाहिए। अंतर्मुख दृष्टि से उनका सत्य स्वरूप ख्याल में आता है और महापुरुषों के जीवन का वास्तविक लाभ भी मिलता है। इस ही एक विचार से आचार्य कुंदकुंददेव का जीवन चरित्र लिखने का प्रयास किया है । इस चरित्र में आचार्य का विशिष्ट बचपन, उत्तरोत्तर वृद्धिंगत आत्मसाधना और उसकी महिमा, उनका प्रगाढ़ गांभीर्य लोकोपकारी साहित्य रचना, विदेह क्षेत्री गमन आदि विषयों को अपनी अल्पबुद्धि से कथन किया है। आचार्यों के माता-पिता जी के नाम और बचपन की घटनाओं को इतिहास की कसौटी पर न कसे इतना वाचकों से मेरा नम्र निवेदन है । यह कृति किसको कितनी स्वेगी यह लिखना अप्रासंगिक होगा। तथापि सुपक्व बुद्धिधारकों को अध्यात्म प्रणेता की महिमा और अध्यात्म ग्रंथों के अध्ययन की प्रेरणा की मुख्यता से यह मेरा प्रयास अच्छा लगेगा ऐसा मेरा अनुमान है। इस ही आशा से कन्नड़ भाषा भाषियों के करकमल में यह कृति अर्पण करता हूँ । मेरे अल्प अध्ययन के कारण इस किताब में अनेक कमियाँ रह सकती हैं। वाचकों को कमियाँ ख्याल में आयेगी। उनसे मेरा नम्र निवेदन है कि मुझे त्रुटियोंPage Navigation
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