Book Title: Kundakundadeva Acharya
Author(s): M B Patil, Yashpal Jain, Bhartesh Patil
Publisher: Digambar Jain Trust

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Page 7
________________ आचार्य कुंदकुंददेव लेखक का मनोगत अज्ञानी जीव अनादि काल से पर्यायमूढ़ रहा है । अतः उसे आत्मस्वरूप का यथार्थ ज्ञान नहीं हुआ / अज्ञान ही दुःखावस्था का / संसारावस्था का मूल कारण है । निज शुद्धात्मा का ज्ञान नहीं होने से मोह, राग, द्वेष होते हैं। इसलिए निज शुद्धात्मा का निर्मल, स्पष्ट ज्ञान प्राप्त करके मोहादि परिणामों का त्याग करना ही सुखदायक मोक्षमार्ग का शुभारम्भ है। समयसारादि अध्यात्म ग्रंथों के अध्ययन से जीव के शुद्ध स्वभाव का ज्ञान होना सहज तथा सुलभ है। सम्यग्दर्शन की प्राप्ति अथवा मोक्षमार्ग का प्रारम्भ शुद्धात्मा के ज्ञान - श्रद्धान के बिना शक्य नहीं यह त्रिकालाबाधित सत्य हम सभी को स्वीकार करना आवश्यक है। अध्यात्म शब्द ही शुद्धात्मा की मुख्यता रखता है और अन्य सभी का निषेध करता हैं । निज शुद्धात्मा का आश्रय / अनुभव करने से ही वर्तमानकालीन दुःखमय - अशुद्ध पर्याय भी सुखमय-शुद्धरूप बन जाती है. इसे ही मोक्ष कहते हैं । निज शुद्धात्मा को छोड़कर अन्य अप्रयोजनभूत पदार्थों की जब तक श्रद्धा रहेगी तब तक धर्म-मार्ग की प्राप्ति संभव नहीं है। इसलिए ही व्यवहार को (व्यवहारनय से प्रतिपादित विषय को) अभूतार्थ और निश्चय को (निश्चय से प्रतिपादित विषय को) भूतार्थ कहा है।

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