Book Title: Kortaji Tirth ka Itihas Sachitra Author(s): Yatindravijay Publisher: Sankalchand Kisnaji View full book textPage 7
________________ अगर कोई सद्गृहस्थ सरकारी रजा प्राप्त करके, दश बारह हजार रुपीया लगा कर इस कसबे की भ्रमित जमीन का खोद-काम करा डाले तो अनेक जिनप्रतिमा और उनके तोरण मिलने की आशा की जा सकती है। आशा रक्खी जाती है कि कोई सखी गृहस्थ इस कार्य को उपाड लेने के लिये कटिबद्ध होगा और अपनी धार्मिक वीरता दिखलावेगा। इस पुस्तक में हमे जो सामग्री उपलब्ध हुई, उसीके आधार पर कोरटाजी तीर्थ का संक्षिप्त इतिहास लिखा गया है। इतिहास का विषय ( अङ्ग ) यद्यपि स्थूल है, तथापि इसे कोरटाजी तीर्थ की प्राचीन और अर्वाचीन वस्तु-स्थिति का द्योतक और इतिहास लेखन सामग्री का एक साधन समझना चाहिये । इसमें कोरटाजी उसके जैन और जैनेतर स्थानों की यथा दृष्ट वस्तु-स्थिति स्थूल रूपसे आलेखित है जो इतिहास लेखकों के लिये उपयोगी और नहीं से अच्छी है। इस पुस्तक के प्रारंभ में कोरटाजी तीर्थ के चार जिनमन्दिरों के, और महावीरप्रभु की प्राचीन, तथा अर्वाचीन दोनों मूर्तियों के ब्लाक दर्ज कर दिये गये हैं, जो कोरटाजी तीर्थ की वास्तविक स्थिति के दर्शक हैं । साधनाऽभाव से भूमिनिगत, और नूतन जिनालय में स्थापित श्रीऋषभदेव भगवान् और उनके दोनों बगल के श्री सम्भवनाथ तथा श्री शान्तिनाथ भगवान् के काउसगिये एवं सर्वाङ्ग सुन्दर प्राचीन बड़ी तीन जिन प्रतिमाओं के ब्लाक इसमें दर्ज नहीं किये जा सके, इसका हमे www.umaragyanbhandar.com Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, SuratPage Navigation
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