Book Title: Kortaji Tirth ka Itihas Sachitra
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Sankalchand Kisnaji

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Page 5
________________ यहाँ सब से प्राचीन श्रीमहावीर प्रभु का मन्दिर है, जो महावीर-निर्वाण से ६८ वें वर्ष में बना, और ७० वें वर्ष में जिसकी प्रतिष्ठा पार्श्वनाथ सन्तानीय श्रीरत्नप्रभसूरिजी के करकमलों से हुई है । इससे सिद्ध है कि यह जिनमन्दिर २४०० वर्ष का पुराना है, इसके सं० १२५२ और १७२८ में एवं दो जीर्णोद्धार हुए हैं, । इसीसे यह अपने अस्तित्व को अब तक कायम रख चुका है। _दूसरा मन्दिर श्रीऋषभदेवजी का है, जो मंत्री नाहड द्वितीय के किसी कौटुम्बिक का बनवाया हुआ है, इसका भी जीर्णोद्धार विक्रम सं० १६२१ में हुआ है ऐसा यहाँ के एक खंडित लेख से जान पडता है।। तीसरा मन्दिर श्रीशान्तिनाथ का है जिसमें इस समय मूलनायक श्रीपार्श्वनाथ विराजमान हैं जो अर्वाचीन हैं । इसको मन्त्री नाहड (द्वितीय) के पुत्र ढाहल (ढाकलजी) ने विक्रम की १३ वीं शताब्दो के अन्त्य भाग में बनवाया है । यह ऊपर के द्वितीय जिनालय के पहले बना है । इसकी स्तम्भलताएँ बाद में बनी हैं और इसका जीर्णोद्धार विक्रम की १७ वीं सद्दी में कोरटा के नागोतरा गोती किसी महाजनने कराया है । दसरे और तीसरे जिनमन्दिरों का अब जीर्णोद्धार होने की अत्यावश्यकता है । क्योंकि अब ये मन्दिर खड-विखड होने लगे हैं। यदि इन्हों को सुधराने का प्रवन्ध न किया जायगा तो पड़ जाने की संभावना है। हम श्रीमान् जैनों का Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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