Book Title: Kavyanushasana Part 1
Author(s): Hemchandracharya, Rasiklal C Parikh
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
View full book text
________________
४८२
दृष्टिःसालसतां बिभर्ति (अ.) ७२०, ४२३. न खलु वेयममुष्य (अ.) ६९९, ४१५. दृष्ठिस्तृणीकृत (अ.) ६७९, ४०८.
[शि. व. स. ७ श्लो. ५३ ] [उ. रा. च. अं. ६. श्लो. १९] न च मेऽवगच्छति (अ.) ७१९, ४२१. दृष्टिः शैशवमण्डना (अ.) ७०९, ४१७. |
[शि. व. स. ९. लो. ५६] दृष्टे लोचनवन्मनाङ् (अ.) ११९, १२८.
| न तज्जलं यन (अ.) ५७५, ३७०. [अ. श. श्लो. १६० ] द्वयं गतं संप्रति (अ.) २३८, २१०;
भट्टिका. स. २. श्लो. १९] (वि.) १३५, ५०; ३३५, २०३;
| नदी तूर्ण कणों (वि.) ९६, २७. ३८५, २५४. नद्यो वहन्ति (वि.) २६९, १९०. [ कु. सं. स. ५ श्लो. ७१] | ननोनुननो (अ.) ४६४, ३०८. द्वारोपान्तनिरन्तरे मयि त्वया (अ.) ३५,६२ [कि. स. १५. 'लो. १४ ] द्विगुरपि सद्वन्द्वोऽहं गृहे च मे (वि) २, ७. | नभ इव विमलं (अ.) ५२०, ३४६. द्वित्रमुचुकुन्दकलिकः (वि.) २७२, १९०.
[रु. का. ८-२८] द्वियोम्नि (वि.) २३३, १८४. | न भवति भवति च (अ.) ४४०, २९७. [वि. शा. भ. अं. १, 'लो. ११]
[सुभा. २३६. रविगुप्तस्य ] द्विषतां मूलमुच्छेत्तुं (अ.) ४९९, ३००. | न मया गोरसाभिज्ञं (अ.) ४७६, ३२३. द्वीपान्यष्टादशात्र (वि.) २१८, १८०. |
[का. द. परि. ३. लो. १०८ ] द्वौ वज्रवर्गों जगतीपतीनां (वि.)२७, १२..
नमस्त्रिभुवनाभोग (वि.) २१४, १७९. धनुर्व्याकिणचिह्नन (अ.) ३८८, २६५. धनुर्माला मौर्वी (वि.) १२५, ३३.
नयनानन्ददायीन्दोर् (अ.) ६६७, ४००. [सुभाषितावली घण्टकस्य ] नवजलंधरः (अ.) २१२, २०३-४. धन्यस्यानन्यसामान्यसौजन्यो (अ.) नवनखपदमङ्गं (अ.) ७१३, ४१९. ५०४, ३४२.
[शि. व. स. ११, 'लो. ३४.] धम्मिलस्य न कस्य (अ.) ३४२, २४२. नवीनविभ्रमो (अ.) ६१९, ३८३. धवलोसि जइ (अ.) ६०६, ३७७.
[स. शं. ६६७. स. श. ७६५ 1 न स संकुचित (वि.) १०, ८. धातुः शिल्पातिशय (अ.) ६४१, ३९२.
[रा. कि. ३४, १८) धात्रा स्वहस्तलिखितानि (वि.) ३७८,२५३/ नानाकारेण कान्तभूः (वि.) ४५६, २९८. धीराण रमइ (अ.) ७२, ७५. नागावासः ७४, २३. धीरोदात्तं जयति (वि.) ५८१, ४११. नान्तर्वर्तयति (अ.) १६३, १४८, न केवलं भाति (अ.) ४९९, ३४०. नाभिवादनप्रसाद्यो (वि.) ३४७, २२१. नखदलित (वि.) २८, १२... नारीणामलसं (वि.) ४७१, ३०५.
[वि. शा. भ. अं. ३ 'लो. १५] [रुबट का. लं. अ. ३. श्लो. २४]
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631