Book Title: Kavyanushasana Part 1
Author(s): Hemchandracharya, Rasiklal C Parikh
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
View full book text
________________
शैथिलय (वि.) २७७.
(श्वभ्रवती (वि.) १८३... शैशव (ऋतु) (वि.) १९६.
श्वसित (अ.) १०९. शोक (अ.) ११६, १२६ (लक्षण); श्वेतवर्षगिरि (वि.) १८१.
(वि.) ९२, ९५, ११५. षष् (अ.) १९५ (शब्दालकार), ३३० शोण (नद) (वि.) १८२.
(भाषाश्लेष). शोभा (अ.) ४०६ (लक्षण), ४०७. | षड्योग (भाषाश्लेष) (अ.) ३३२.
४२२, ४२८, ४२९ (स्त्री-अय- षड्स (डिम) (वि.) ४२९. स्मज-अलंकार).
षड्विधा (स्वस्त्री) (अ.) ४१५. शोभाजनक (यमक) (अ.) २९९.
षोडशभेद (नायक) (अ.) ४१०.
षोडशराजोपख्यान (वि.) ४६३. शोभाशून्यत्व (वि.) ३७८.
संयमतपस् (वि.) २. शौरसेनी (अ.) ४६३; (वि.) ३२६.
संयोग (वि.) ८९, ९०, ९१, १०१. शौर्य (अ.) ११७, ४०६, ४०७; (वि.)
| संवत्सर (वि.) १८७, १९७. ३३५.
संवित्ति (अ.) ६६; (वि.) ६६. श्याम-वर्ण (वि.) १८५, १८६. श्रम (अ.) ११०, ११६, १२५, १२६,
संविद् (अ.) १२४; (वि.) १००, १०१.
संशय (अ.) ३८७, ३९८, ४००, ४०१. १२७, १३६ (लक्षण).
संशयप्रतीति (वि.) ९३. श्रव्य (अ.) ४३२ (अभिनेय), ४४९;
संशययोग (वि.) ९९. (वि.) २८९.
संशय-संकर (अ.) ४००. श्रव्यप्रकार (अ.) ४४९.
संशयोदय (वि.) १०१. श्रीगदित (अ.) ४४९ (लक्षण).
संसर्ग (अ.) ६३, ६४. श्रीपर्वत (वि.) १८३, ४४१.
संसर्गादि (अ.) ६३. श्रुति (गीत) (अ.) ३६९; (वेद) (वि)
संस्कार (वि.) २२८. १२३.
संस्कारक (वि.) ९६. श्रुतिकटुत्व (अ.) २४०.
संस्कारशेषता (अ.) १२५. श्रेष्ठिन् (अ.) ४३६.
संस्कार्या (प्रतिभा) (अ.) ६. 'लेष (अ.) १४९, २१८, ३२४ (श
संस्कृतभाषा (अ.) ३३०, ४६१, ४६२; ब्दालंकारलक्षण ), ३२९, ३८२ (वि.) ३२५, ३२६. (अर्थालकारलक्षण), ३९९; (वि.) संस्थान (अ.) ३८०. २७८, ३२९, ३३०, ३३९, ३७९, संस्फेट (अ.) ४३८, (वि.) ४३८..
संहिता (अ.) ४६६ (लक्षण). श्लोकगत (अ.) ३१३०
सकलकथा (अ.) ४६५ (लक्षण); (वि.) श्लोवृत्ति (म.) ३००, ३०१.
७१
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631