Book Title: Kavyanushasana Part 1
Author(s): Hemchandracharya, Rasiklal C Parikh
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
View full book text
________________
__३२१.
व्यजन (अ.) २९५.
व्युत्पत्ति-अभ्यास (अ.) ६. ... व्यञ्जनचित्र (अ.) ३०८.
ब्रीडा (अ.) १०५, १२६, १२७, ध्यान-व्यापार (अ.) ६६.
१३० (लक्षण), १६.. ध्यतिरेक (अ.) २२१, ३८२ (लक्षण), ब्रीडाव्यञ्जक (अ.) २२९, २३०.
शक (वि.) १८३. ३९९; (वि.) ३३९, ३७९, ३८२,
| शकार (वि.) ४४४. व्यत्यय (अ.) ३६८.
शकुन्तला (वि.) ३६३. व्यभिचारिख (अ.) १२६.
शक्ति (अ.) ५८, ११७; (वि.) ११७, व्यभिचारिन् (अ.) ८८, १०३, १०६,
१०८, ११०, ११४, ११६, ११७, शङ्का (अ.) ११०, ११८, १२६, १२५, ११८, ११९, १२०, १११, १२३, १२८, १३३ (लक्षण). १२४, १२५, १२६ (लक्षण), शठ (अ.) ४१०, ४१३ (नायकलक्षण). १२८, १४७, १५९, १६०; (वि.) शतद्रु (वि.) १८३. ९०, ९१, ९६, १०४, १०५, शबलता (वि.) १५४.
१०६, १२३, १२९, १३९. शबलत्व (अ) १२६, १२८. व्यवहार (अ.) १७९; (वि.) १९९.
शब्द (अ.) ४२, ३२४. भ्यसन-आवेग (वि.) १४१.
शब्दवैचित्र्य (अ.) ४५५. व्याकरण (वि.) ७.
शब्दशक्ति (अ.) ५८ (लक्षण), ६८. व्याख्यातृ (वि.) ९३.
शब्दशक्तिमूल (व्यङ्गय) (अ.) ६३. व्याघात (अ.) ३७४, ३७७.
शब्द लेष (अ.) ३२८, (वि.) ३२८. व्याजस्तुति (अ.) ३८१ (लक्षण); (वि.)
शब्दसन्दर्भ (वि.) ४५९
शब्दसन्दर्भवेदिन् (वि.) ४५६. व्याधि (अ.) ११०, ११६, १२६,
शब्दसाम्य (अ.) ३२९. १२७, १३१ (लक्षण), १३२;
शब्दानुकार (वि.) २३३. (वि.) ९१, ३३५.
| शब्दानुशासन (वि.) ७. व्यायाम (वि.) ४४०.
शब्दान्तरसनिधि (अ.) ६४. व्यायोग (अ.) ४३२, ४३९, ४४०, शब्दार्थ (अ) ३५, २७४, २९५; (लक्षण); (वि.) ४४५.
(वि.) २७६, ३४४. व्यापार (अ.) ३८१.
शब्दार्थ-गुणभाव (अ.) ४. व्याहतत्व (अ.) २६१, २६२.
शब्दार्थ-दोष (अ.) १९९, २२६, २७३. व्युत्पत्ति (लक्षण) ७, १३.
शब्दार्थ-वैचित्र्यमात्र (अ.) १५७. व्युत्पत्ति-अभिसंधान (वि.) ४४९. | शब्दार्थशक्तिमूल (व्यंग्य) (अ.) ६३.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631