Book Title: Kavyanushasana Part 1
Author(s): Hemchandracharya, Rasiklal C Parikh
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

View full book text
Previous | Next

Page 579
________________ सकलजातिसुलभता (काम) (म.) १०६. | संदेह (वि.) १४२, ३३०, ३३९. सकलविघ्नविनिर्मुक्ता संवित्ति (वि.) ९९. | सन्धि (अ.) १२६, १२८, (वि.) ४३९, सकृदावृत्ति (अ.) २४६. सगुण (शब्दार्थ) (अ.) २७४. सन्धि (ऋतु) (वि.) १९५. संकर (अ.) ३२९, ३९८ (लक्षण); | सन्धिबन्ध (वि.) ४५०. (वि.) ३२९, ३३०, ३६२, ३६४. सन्धिविग्रह (वि.) ४३४. संकल्प (वि.) ९९. सन्यासिन् (वि.) १२२. संकीर्ण (संशय) (वि) ३८५. सप्तन् (अ.) ४२२, ४२८ (अयत्नजसंकीर्णत्व (अ.) २०१, २१५. अलंकार); (वि.), १८० (पाताल), संकेतविषय (अ.) ४३. १८१ (लवणसमुद्र), ३३४ (स्वर). संक्षोभ (वि.) ४३८. सप्तधाप्रकृति (अ.) १७४. संगीतक (वि.) १७७. सप्तपञ्चाशद्भेद (भाषाश्लेष) (अ.) ३३१. संगीतकशालाकन्या (वि.) ४३६. सप्तमहाद्वीप (वि.) १८०. सचिव (अ.) ४३५; (वि.) ४४४. संचारिका (वि.) ४४४. सप्तस्वर (वि.) ३३४. संजल्प (वि.) ३३५. सभा (अ.) ११९; (वि.) १२०. संज्ञा (अ.) ६६ (वि.) २२८. सम (अ.) ३९२, (लक्षण); (वि.) ३३९. सहक (अ.) ४३२, ४४४ (लक्षण); (वि.) समग्रगुण (नायक) (अ.) ४०६. समता (वि.) २८०, २८८. सत्कवि (वि.) २४८. सम-प्रधान (व्यंग्य) (अ.) १५७. सत्त्वज (गुण) (अ.) ४०६. समय (अ) २७, २०९; (वि.) ४६९. सत्त्वजा (अ.) ४२२. समर्पण (वि.) ३३४. सत्य (लोक) (वि.) १७९. समर्पणा (वि.) ३३४. सत्यभामा (अ.) ४२१. समवकार (अ.) ४३२, ४३७ (लक्षण); सदाचार (वि.) १८२. (वि.) ४४०, ४४४. सदृशकरण (वि.) ९५. समवाय (अ.) ३४०. संतामवृत्ति (वि.) १०३. समस्त-अभिव्यजकत्व (अ.) १.३. संताप (अ.) ११०. समस्तविषया (उपमा) (अ) ३४७. संदानितक (अ.) ४६५, ४६६ (लक्षण); समस्यापूरण (अ.) १६. - (वि.) २९४, ३१५. . समाधि (वि.) २८१, ३९३. संदिग्धत्व (अ.) २६३, (वि.) २२९. समापत्ति (वि.) ९९. संदिग्धप्राधान्य (वि.) १५५. | समाप्तपुनरात्तत्व (अ.) २०१, २१३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631