Book Title: Kavyanushasana Part 1
Author(s): Hemchandracharya, Rasiklal C Parikh
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 581
________________ सांख्य (तर्क) (वि.) १०. दश (वि.) ९६. सातिशय (माधुर्य ) (अ.) २८९. साम्य ( गुण) (वि.) २८७, २८८. साम्योक्ति (अ.) ३८३. सार - अलङ्कार (वि.) ३९५. सार्थवाह (अ.) ४३५. सावती (वि.) ४४०. सात्त्विक (अ.) १४४ (लक्षण), १४७ सालंकार (शब्दार्थ) (अ.) २९५. सावहित्था ( धीरा - प्रौढा - नायिका) (अ.) (वि.) १४७. सात्त्विकगुण (अ.) ४०६ (लक्षण). सात्त्विकानुभवन (अ.) १११. सायकि (वि.) ४५८. सादृश्यप्रतीति (वि.) ९३. सादृश्यमति (वि.) ९५. साधर्म्य (अ.) ३३९, ३५५, ३८४. साधारणीकरण (वि.) ९६. साधारण भावना (वि.) १०३. साधारणभावसिद्धि (चि. ) १००. साधारणोपायबल (अ.) ८८. साधारण्य (अ.) ८८; (वि.) ९८. साधुवाद (अ.) १२० ; ( वि . ) १२० . साध्वस (अ.) १०९, ४३१. બ सामिनय (नृत्त) (वि.) ४४८. साभिप्राय (बि.) २७६. सामग्री (वि.) १०१. सामर्थ्य (अ.) ६४. सामाजिक (वि.) ९३, ९४, ९५, ९८, १२१, २७७. सामाजिकजन (अ.) ८८. सामाजिकजनता (वि.) ९२. सामाजिकधी (वि.) १०२. सामान्य (अ.) २७२, ३७१ (अलंकार); (वि.) ३५३, ३७१ (अलंकार). सामान्या (नायिका) (अ.) ४१३, ४१८ (लक्षण). Jain Education International ४१६. सावित्री (वि.) ४६३. साहचर्य (अ) ६४. सिंहल (वि.) १८२. सिद्ध (रस) (अ.) १०३. सिद्धसिन्धु (वि.) ४५९. सिद्धान्त - प्राकृत (अ.) २. सिन्दूरादि (वि.) ९५, ९६. सिन्धु (वि.) १८३. सीता (वि.) ९५, ९६, ३६३. सुकवि (वि.) ११०. सुकुमारमति ( अ ) ३०७. सुखरूप (वि.) २७७. सुखोत्तरा ( रति) (अ.) १०७. सुग्रीव (वि.) ३४६. सुप्त (अ.) ११०, १२६, १२७, १३२ (लक्षण). सुरा (वि.) ९३. सुराष्ट्र (वि.) १८३. सुसूत्र संविधानकस्व ( अ ) ४५७. सुम (वि.) १८२. सूक्तरत्नपरीक्षाव्यसनैकर सिकता (वि.) २५९ सूक्ष्म (वि.) ३९१. सूत्र (वि.) १०३. सूरसेन - भाषा ( अ ) ३३०. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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