Book Title: Kavyanushasana Part 1
Author(s): Hemchandracharya, Rasiklal C Parikh
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
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सूरिक (वि.) १८२.
स्थाय्यनुकरण (वि.) ९५. सेनापति (वि.) ४११, ४४४. स्थितिधर्मन् (व्यभिचारिन् ) (अ.) १२६, सैन्धव (वि.) १८३.
१२७. सोपचार (अ.) ४१६.
स्थूल (वि.) ३२१. सौकुमार्य (वि.) २८३.
स्थैर्य (अ.) ११७, ४०६, ४०८
(लक्षण). सौन्दर्यविरह (वि.) १०२.
स्नेह (अ.) १०६; (वि.) १०६. सौन्दर्यातिशयकृत् (वि.) १०५.
स्नेहनिवेदन (अ.) १११. सौम्य (वि.) १८१.
स्फुटत्वाभाव (वि.) ९९. सौर-मान (वि.) १८५.
स्फुटरस (अ.) १५८. सौरसेनी (अ.) ३३१.
स्मार्त (वि) १२३. सौवीर (वि.) १८३.
स्मित (वि.) ११५. स्तम्भ (अ.) ११६, १४४, १४५; (वि.)
| स्मृति (अ.) ११७, १२०, १२६, १४५. स्तम्भादि (अ.) १४७.
१२७, १२८, १२९ (व्यभिचा.
रिभावलक्षण), २१२, ३९१ (अलं. स्त्री (अ.) ११८, ४२१; (वि.) ११८.
कारलक्षण); (वि.) स्त्री-अलंकार (सत्वज) (अ.) ४२२.
८, ९९,
१०२, ३३९. स्त्रीप्राया (अ.) ४३६.
स्याद्वाद (वि.) २. स्त्रीलोक (वि.) १०१.
स्रग्धरा (वि.) २८७, ४६०. स्थविरा (वि.) ४४४.
स्रोतोजन (वि.) १८३. स्थान (अ.) ३०९.
स्वकीया (अ.) ४१३. स्थानक (अ.) ३८०.
स्वनामाङ्कता (वि.) ४५५. स्थापत्य (वि.) ४४४.
स्वप्न (अ.) ११०. स्थापिता (वि.) ४४४.
स्वप्रतिष्ठ (वि.) ४४७. स्थायित्व (अ.) १२६. स्थायिन् (अ.) ८८, १०७, ११४,
स्वभाव (अ.) ३७९, ४०५, ४०५. ११६, ११७, ११८, ११९, १२०,
| स्वभावनिहव (अ.) १११. १२१, १२४, १२५, १२९, १४७, स्वभावाभाषण (वि.) ३३५. १५९, १६९; (वि.) ९०, ९१, स्वभावोक्ति (वि.) ४०३. ९२, ९३, १०१, १०२, १०१, | स्वर (अ.) ६५ (वैदिक); (वि.) ३३४
(संगीत.). . स्थायिभाव (अ.) १२४ (लक्षण), १५९. | स्वरचित्र (अ.) ३०७. स्थायिरूपचित्तवृत्तिसूत्रस्यूत (व्यभिचारिन्)। स्वरभेद (अ.) ११६, ११८, १४४, (अ.) १२५.
१४ (वि.) १४..
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