Book Title: Kavyanushasana Part 1
Author(s): Hemchandracharya, Rasiklal C Parikh
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
________________
समासोकि (अ.) १४९ २०८, (लक्षण), ४००; (वि.)
३३०, ३३९, ३६४. समासोपमा (वि.) ३४२. समाहित (अ.) ४०४.
समुच्चय (अ.) ३९२ (लक्षण); (वि.) ३३९, ३९२.
समुत्साहन (अ.) १२५.
समुद्रदत्त (वि.) ४३४. समुद्रनवनीत (वि.) २२७.
समुद्रभू (वि.) २९८.
समूहविशेष (वि.) ९५.
संपूर्णा (वि.) ४१४. संप्रदान (वि.) २५३. संबन्ध (वि.) २५४. संबन्धगूढ (अ.) ३२३. संभव (अलंकार) (वि.) ४०५. संभाषण (अ.) ४०९. संभोग (शृङ्गार) (अ.) १०८, (लक्षण), १७७; (वि.) १७७. संभोगाभास (अ.) १४७, १४८. संभ्रम (अ.) ११३. सम्यक्प्रतीति (वि.) ९३.
सम्यग्ज्ञानदर्शन (वि.) २.
सम्यग्योग (वि.) १०२.
सम्राज् (वि.) १८१.
सरयू (वि.) ४५९.
सरल (वि.) १८३.
सरसता (वि.) ९६. सरस्वती (वि.) ४७, १८३. सरः सन्निवेश (वि.) १२०. सरित् (वि.) १८३.
५६३
३७८, ३२९,
Jain Education International
१०९
सर्गबन्ध (वि.) २९४ .
सर्वतोभद्र ( अ ) ३१३; (वि.) ३११. सर्व प्रयोजनोपनिषद्भूत (वि.) ३.
सर्वभाषा ( कथा ) (अ.) ४६३. सर्वसाधारण २९३.
( प्रसादगुण) (वि.)
सर्वसंधि (अ.) ४३५.
सर्वसेन (वि.) ४५७.
ससन्देहालंकार (अ.) २७१, ३८५ (लक्षण); (वि.) ३८६.
सहचारिन् (वि.) ९१.
सहज वयक्षरूपक (अ.) ३५२.
सहदेव (वि.) ४५०.
सहस् (वि.) १९०.
सहस्य (वि.) १९०.
सहुड (वि.) १८३.
सहृदय (वि.) ४, ९८, १०५, १६६, २४८, २५९, २७६, ३८१. सहृदयता - सर्वस्व (अ.) १७१. सहृदयहृदयसंवाद (अ.) ८८. सदयहृदयाह्लादकारिन् (अ.) ३३९. सहोति (अ.) ३७७ ( लक्षण); (वि.) ३३९, ३७७, ३७८, ४०२. सह्य (वि.) १८३.
साकाङ्क्ष
(अ.) ३३६.
साका इत्व (अ.) २६१, २६२.
साक्षात्कार (वि.) ९९. साक्षात्कार कल्पार्थ (वि.) ४४८.
सागरिका (वि.) ४५१, ४५३, ४५४,
४५५.
साघाता (प्रौढा अधिरा नायिका) (अ.)
४१७.
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631