Book Title: Kavyanushasana Part 1
Author(s): Hemchandracharya, Rasiklal C Parikh
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

Previous | Next

Page 583
________________ स्वरित (वि.) ३३५. स्वर्गमर्त्यपाताल (वि.) १७९. स्वशब्द- वाच्यत्व (अ.) १५९. स्वशब्दाभिधान (अ.) १५९. स्वशब्दोक्ति (वि) १५९. स्वसंवेदन सिद्ध (अ.) ८९. स्वस्तिक (वि.) ३२१. स्वस्त्री (अ.) ४१३, ४९५. स्वस्त्री - अष्टावस्था ( अ ) ४१८. स्वा (नायिका) (अ.) ४१३ ( लक्षण ). स्वातन्त्र्य (अ.) ३९८. स्वाधीनपतिका ( अ ) ४१८ ( लक्षण ). स्वाभाविक (अ.) ११८ (भय), ४२२ (स्त्री- अलंकार). ५६६ हर्ष (अ.) १०५, ११७, १२०, १२६, १२७, १३४ (लक्षण); (वि.) १७९. हल (वि.) ३२१. स्वामिनी (वि.) ४४४. स्वेद (अ.) १०९, ११४, १२०, १४४, हुहुक (वि.) १८३. १४६. हंसमार्ग (वि.) १८३. तत्तत्व (अ.) २०१, २१४. हरहूर (वि.) १८३. हरि (वि.) २९८. हरिताल (वि.) ९५. हरिवर्ष (वि.) १८१. (वि.) ४४६. हसित (वि.) ११५. हस्ताय निष्पेष (अ.) ११६. हाव (अ.) ४२२, ४२३ (लक्षण), ४२४. हास (अ.) ११३, ११४; (वि.) ११५ (लक्षण), १२६. हासादि (वि.) १०१ १७६. हास्य (अ.) १०६, ११३ (लक्षण), ११४; (वि.) ११५, ३३५, ३३६. हास्यरस - ( षोढात्व) (वि.) ९१. हास्याभास (वि.) १४७. हास्यादभुत ( अ ) २८९. हाहाकार ( अ ) १२० (वि.) १२०. हिमवत् (वि.) २६, १८१, १८२. हिमालय (वि.) १८३. हिण्डिवा (वि.) १८३. हिरण्मय (वि.) १८१. हिरण्यकशिपु (वि.) २३३. हुडुकार (वि.) ४४७. Jain Education International हलधर (वि.) २९८. एक्लीसक (अ.) ४४५, ४४६ (लक्षण); हेमन्तवर्णन (वि.) ६९. हूण (वि.) १८३; २१८. हृदय (अ.) ३३९. हृदयविश्रान्ति (वि.) १०१. हृदयवैमल्यप्राप्ति (वि.) १००. हृदयसंवाद (वि.) ९५, ९९. हृदयस्पन्द ( अ ) ११८. हृय (अ.) ३३९. हृयता (अ.) १०६, ३९७. हल्लास (अ.) ११९. हेतु (अ.) ३९७; (वि.) ३९७. हेमकूट (वि.) १८१. हेमन्त (वि.) १९०. हेमन्त - शिशिर - ऐक्य ( वि . ) १९७. हेला (अ ) ४२२, ४२३ (लक्षण); ४२४. वाक (वि.) २४५. हस्त्यश्वगरुत्मत्पुष्पकादिवर्णन (वि.) ४५८ | हेषति (वि.) २३४. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631