Book Title: Kavyanushasana Part 1
Author(s): Hemchandracharya, Rasiklal C Parikh
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 574
________________ विपर्यस्त (भाव) (वि.) ३६३. विरुद्धत्व (अ.) २६७. विपाशा (वि.) १८३. विरुद्धबुद्धिकृत्त्व (अ.) २५९. विप्र (अ.) ४३५; (वि.) ४३५. विरुद्धव्यग्यत्व (अ.) २६१, २६७. । विप्रतिपत्ति (वि) १४२. विरोध (अ.) ६४, १६३, ३७३ (लक्षण), विप्रयोग (अ.) ६४. ३७४ ३७७, ३९९; (वि.) ३३९, विप्रलब्धा (अ.) ४१८, ४२० (लक्षण), ४२१. विरोधपरिहार (अ.) १६२. विप्रलम्भ (शृङ्गार) (अ.) १०८, ११० विलाप (वि.) ९१. (लक्षण). विलास (अ.) ४०६, ४०८ (लक्षण), विप्रलम्भरस (अ.) १२७. ४२४-४२५ (स्त्रीसत्त्वजअलकारविप्रलम्भाभास (अ.) १४८. लक्षण ), ४२७; (वि.) ४३४. विबोध (अ.) ११६, विवक्षित (वि.) ३५९. विभक्ति (अ.) ३२४, ३२८. विवक्षिताविवक्षित (वि.) ३५९. विभाव (अ.) ८८, १०३, १०४, १०८, विवशीभाव (वि.) ९९. ११४, ११६, ११७, ११८,११९, विवाद (वि.) ३३५. १२०, १२५, १२६, १२९, १४५; | विशेष (अ) २७२; (वि.) ३५३, ३५४. (वि.) ८४, ९०, ९१, ९२, ९४, विशेषक (अ.) ४६५, ४६६ (लक्षण). ९५, ९६, ९७, १०३, १०४, विशेषसाकल्य (वि.) १०५. १०५, १०९, ११४, ११५, १२०. विशेषाद्यलंकार (अ.) ३७१. विभावत्व (वि.) १५८. विशेषोक्ति (अ.) ३७७. विभावना (अ.) ३७७. विश्रान्ति (वि.) ९९. विभावभूयिष्ठत्व (अ.) १२६. विश्वामित्र (वि.) २४३. विभावादिरूपता (अ.) १५८. विषम (अ.) ३७७, ३९१ (लक्षण), विभावानुभाव-क्लेशव्यक्ति (अ.) १६९. ३९२; (वि.) ३३९. विभावानुभावव्यभिचारिसंयोग (वि.) ८९. विषमवृत्त (वि.) २८८. विभावाभाव (अ) १२५. । विषय (अ.) ३३६. विश्रम (अ.) ४२४, ४३६ (लक्षण). | विषयविषयिन् (अ.) ३४९; (वि.) ३४९. विमर्श (वि.) १४२. विषयसामग्री (वि.) ९६. विमर्श (संधि) (अ.) ४५४ (लक्षण); विषवेग (वि.) १४३. (वि) ४५८. विषाद (अ.) ११६, १२६, विरहोत्कण्ठिता (अ.) ४१८, १३१ (लक्षण). (लक्षण), ४२१. विष्कम्भक (वि.) ४०३. १२७, . . . ४२० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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