Book Title: Kavyanushasana Part 1
Author(s): Hemchandracharya, Rasiklal C Parikh
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
________________
लोहितगिरि (वि.) १८२. लौकिक - अर्थ (वि.) ३८०. लोकायतिक (तर्क) (वि ) १०. लौकिकतुल्या (वि.) ९९.
लौकिकी (वि.) ९९.
लौल्यरस (अ.) १०६. वक्तव्यार्थ प्रतिज्ञान (वि.) ४५६. वक्त्र (अ.) ४६२; (वि.) ४६२ . वक्त्रौचित्य (अ.) २९२. वक्रोक्ति ( अ ) ३३२, ३३३, ४१५.
वचन (अ.) ३२४.
चोवक्रता (अ.) १११.
वजुरा (वि.) १८३.
वणिज् (अ.) ४३५; (वि.) ४३५.
वत्सराज (अ.) १७१, ४१० ; ( वि . ) | वस्त्राभरणमाल्यादिसम्यग्निवेशन
४३३, ४५१.
वर्णक (वि.) ९५.
वर्णन (अ.) ४३२; (वि.) २८६. वर्णच्छटा (वि.) ४४७. वर्णना (अ.) ४३२; (वि.) २८७.
वर्णरचना (अ.) ८७.
५६५
वर्णान्यथात्व ( अ ) २९२.
वर्तक ( ? वि . ) १८२. वर्वर (वि.) १८३. वर्षधर (वि.) ४४४.
Jain Education International
वर्षा (वि.) १८७, १९६. वर्षादि - दक्षिणायन (वि.) १८७. वर्षावेग (वि.) १४०. वल्लिमार्ग (वि.) ४४७. वसन्त (वि.) १९३, १९५. वसन्ततिलका (वि.) ४६०. वसिष्ठ (अ.) ७८.
वस्तु (अ) ६७, ७२, ७५, ८०, १५०, ४३४, ४३५; (बि.) ४३३, ४३४. वस्तुध्वनि ( अ ) ४७. वस्तुरस (वि.) २८२. वस्तु सौन्दर्यबल (वि.) ९१. वस्तूद्बोधनकरण (वि.) ४४८. वस्त्रसंयमन (अ.) १०९.
वायुज (वि.) १८३.
वयस् (अ.) १७९; (वि.) १७९, १९९. वयः - प्रगल्भा (अ.) ४१४
वयः - मध्या ( अ ) ४१४.
२३०, २३५, २३६, २३७,२३९, २४०, २४२, २४४, २६०, ३४१; (वि.) ४०५.
वरुण (वि.) १८१.
वर्णं (अ.) २९०, २९१, २९३, ३२४ वाक्यदोष (अ.) २०१ (लक्षण). वाक्याध्येय (वि.) ४०५.
(वि.) ३३५.
वाक्यार्थ (अ.) २४४ (वि.) ४९. वाक्यार्थाभिनय (अ.) ४३२. वागाद्यभिनय (अ.) ८८. वाच (वि.) ३३७.
वाचक (अ.) ४२, ३४१. वाचन (लेख) (अ.) १११.
वाचिक (वि.) ९२. वाचिक - व्यापार (अ.) १०९. वाच्य (अ.) १५६.
(अ.)
१०९.
वाक्पारुष्य (अ.) ४१६.
वाक्य (अ.) २२६, २२७, २२९,
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631