Book Title: Kavyanushasana Part 1
Author(s): Hemchandracharya, Rasiklal C Parikh
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

Previous | Next

Page 543
________________ योगसूत्र (वि.) १२०, १२३, २२९, । शिशुपालवध (अ.) १३१, १३९, २००, रघुवंश (अ.) १३२, १३४, १४४, २१५, २२०, २२२, २२८, १६८, २०७, २११, २२३, २२५, २३४, २३५, २६०, २६४, २६५, २४२, २४४, २४६, २९५, २९६, २६९, २९९, ३१३, ३४७, ३७०, ३५४, ३७७, ४०८; (वि) २०, ३७६, ३९८, ४१४, ४१५, ४१९, २८, ३२, १४०, १४५, २१८, ४२१, ४३१; (वि.) ८, २०, २१, २२४, २३३, २५१, २५२, २५३, २९, ७६, १७४, २३३, २७९, २५४, २८३, ४२०, ४५६. रत्नावली (अ.) ३७, ३८, ८३, १६०, | शृङ्गारतिलक (अ.) ११५, १५९, ४१८. . ३२५, ३५४, ४१०; (वि) १३, सदुक्तिकर्णामृत (अ.) १३१. ९२, १५१, ४५१, ४५२, ४५३, | सरस्वतीकण्ठाभरण (वि.) ३२३, ४०५. ४५४, ४५५. सुभाषितावली (अ.) १२०, १२९, रामायण (अ.) ७९; (वि.) ८. १३२, १३५, १५४, १५५, १६०, विक्रमोर्वशीय (अ.) ८५, १२७, १३७, १६१, १६२, १६५, २०९, २१०, २०३, २०४, २३०, २४१; २११, २२९, २८५, २९०. २९६, (वि.) ८, २५०. २९७, २९९, ३२४, ३२५, ३३३, विद्धशालभजिका (अ.) २२२, २७२, | .३८२, ३९३, ४१४,४१६, ४२४; २८४, ३६८, ३७६; (वि.) २४, (वि.) १५, ३३, १३९, १५१, १८५. १६९, १८९, ३६२. विषमबाणलीला (अ.) ७४, २०९; सूर्यशतक (अ.) २४१, २६८; (वि.) (वि.) ८२, १४५. १८४, १८९, २५८. वेणीसंहार (अ.) ५९, ११६, १३४, | सेतुबन्ध (अ.) ३६५; (वि.) ४५६, १३८, १५७, २७३, २९१, २९२, | हनुमन्नाटक (अ.) १३०, २४७, ४०८; ४२९; (वि.) २९३, ४. २, ४५०, (वि.) १८६, २५७, २८०. ४५१. हयग्रीववध (वि.) ३१. ध्यासभाध्य (अ.) १२५; (वि.) १३, ! हरविजय (अ.) २०८. हरविलास (वि.) १५७. . शाधरपद्धति (अ.) ३६५. | हर्षचरित (अ.) ६८, (वि.) १४४, ४६२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631