Book Title: Kavyanushasana Part 1
Author(s): Hemchandracharya, Rasiklal C Parikh
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
View full book text
________________
काष्ठा (वि.) १.८७.
कोकण (वि.) १८२. किंपुरुष (वि.) १८१.
कोप (अ.) १०५. किलिकिश्चित (अ) ४.२.४, ४२६ (लक्षण). | कोलगिरि ,(वि.) १८३. कीर (वि) १८३.
कोश (अ) ४६५, ४६६ (लक्षण); कुकुभग्रामराग (वि.) ४४७.
(वि.) ३९९. कुंकुम (वि.) १८३.
कोसले (वि.) १८२. कुटुमित (अ) ४२४, ४२७ (लक्षण). कौबेरी (वि.) १८४. कुन्तल (वि.) १८२.
कौमुदीमहोत्सव (वि.) ४३४. कुमार (वि) ४४४.
कौशल (अ.) ४१३, ४१४, ४१५. कुमारवर्णन (वि.) ४५८.
कौशाम्बी (वि.) ४३३. कुमारी (वि.) ४४४. .
क्रमकैशिक (वि.) १८२. कुमारीद्वीप (वि.) १८१.
क्रिया (अ.) २५, २७, ३२२, ३४०, कुमारीपुर (वि.) १८१:
३४८, ३४९, ३७३, ३७४, ४२२; कुरुपाण्डव (वि) ४५०, ४५९,
(वि.) ३३३. कुलक (अ.) ४६५ (लक्षण), ४६६.
| क्रियात्मका (अ.) ४२२. कुलकादि (वि) २९४.
क्रीडा (अ.) ४२८; (वि.) ३२४. कुलुत (वि.) १८३.
क्रोध (अ.) ११६, १२६ (लक्षपा), १४७, कुवलयापीड (वि.) ३९३.
४१५, ४२९; (वि.) १०१, ३३५. कुक्ष (वि.) ४५९.
क्रोधचेष्टा (अ.) ४१५. कुहू (वि.) १८३.
कोधिनी (अ.) ४१६. कृतक (भय) (अ.) ११८.
क्लिष्टत्व (अ.) २२६, २४१, २४२. कृत्रिम (वि) ९१, ९४.
क्लेशव्यक्ति (अ.) १७०. कृष्ण (वर्ण) (वि.). १८५, १८६. क्षत्रिय (वि.) २७०. कृष्णवेणी (वि.) १८३.
क्षामनेत्र (अ.) १११. केकय (वि.) १८३.
क्षिप्त (अ.) ४६२. केयूरक (वि.) ४५८.
क्षुत्तृष्णादि (अ.) १२९. केरल (वि) १८२.
क्षुद्रकथा (अ.) ४६४. केलि (अ) ४२८.
खड्ग (अ.) ३१३. केशबन्धन (अ.) १०९.
खण्डकथा (अ.) ४६५ (लभष); कैशिकीप्रधाना (नाटिका) (वि) ४३६. (वि.) २९४, ४६५.. कैशिकीहीनत्व (वि.) ४४०.
खण्डिता (अ) ४१८, ४१९, (ल.). कैशिक्या (वि.) ४३५.
! खर (वि.) ४५९.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631