Book Title: Kavyanushasana Part 1
Author(s): Hemchandracharya, Rasiklal C Parikh
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
View full book text
________________
प्रलाप (अ.) १११.
| प्रहेलिका (अ.) ३२३, ४४६; (वि.) प्रवरसेन (वि.) ४५७. प्रवर्तन (अ.) ३०७.
प्राकट्य (वि.) ६६. प्रवहिका (अ.) ४६४ (लक्षण). प्राकृत (अ.) २, ३३०, ४६३. प्रवाद (वि.) ३३५.
प्राकृतभाषा (अ.) ४६१. प्रवास (विप्रलम्भ) (अ.) १११, ११३ | प्राग्ज्योतिष् (वि.) १८२. (लक्षण).
| प्रागल्भ्य (अ.) (स्त्रीअयत्नज अलंकार) प्रवेशक (वि.) ४०३, ४३६.
४२८, ४३१ (लक्षण). प्रशंसावचन (वि.) २८६.
प्राची (वि.) १८३, १८४. प्रशम (अ.) १२६, १२७, १२८. | प्राच्य (वि.) १८५. प्रशमन (वि.) ३३५, ३३६. प्राविवाक (वि.) ४४४. प्रश्न (वि.) ३२३.
प्राभाकर (वि.) ६६. प्रश्नोत्तर (अ.) ३२३; (वि.) ३२३. प्रारम्भ (वि.) ४५५. प्रश्रय (अ.) ४३०.
प्रियदर्शन-आवेग (वि.) १४०, प्रसाद (अ.) १०५, २९१; (वि.) २७४, प्रियोक्ति (वि) ४०४.
२७७, २८७, २८८, २८९, २९१ | प्रेक्षाप्रवर्तन (वि.) ४४५. (लक्षण), २९३.
| प्रेक्षावत्प्रवृत्ति (अ.) ३. प्रसादलक्षण (अ.) २९१.
| प्रेक्ष्य (अ.) ४३२, ४४९; (वि.) ४०५. प्रसादव्यञ्जक (वर्णसमासरचना) (अ.)२९१. प्रेक्ष्य (अभिनेय) (अ) ४३२. प्रसादाख्य (गुण) (वि.) २९१, २९३, प्रेयस् (अ.) ४०४. २९४.
प्रेरण (अ.) ४४५, ४४६ (लक्षण); प्रसादातिकम (वि.) २९३. . .
(वि.) ४४६, ४४७. प्रसिद्धि (वि.) ४३४.
प्रेषणकारिका (वि.) ४४४. प्रसिद्धि-विद्या-विरुद्रस्व (अ.) २६१, प्रोषितभर्तका (अ.) ४१८ (लक्षण).
प्रौढा (अ.) ४१३, ४१५, ४१६ (ना. प्रसिद्धिविरुदत्व (अ.) २६७.
यिकालक्षण), ४१७. प्रसिद्धिविरोध (अ.) २६८.
प्रौढि (वि.) २७६. प्रस्थान (अ.) ४४५, ४४६ (लक्षण); प्रौढोक्ति (अ.) ७३; (वि) ७३. (वि.) ४४६, ४४७.
फल (अ.) ३२३. प्रहरण (अ.) ११६.
बन्ध (अ.) ३१४; (वि) ३२०. प्रहसन (अ.) ४३२. ४४१, ४४२ बल (अ.) ११७. (वि.) ११७.
(लक्षण); (वि.) ४४२, ४४१. बलि (अ.) ११८. .
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631