Book Title: Kavyanushasana Part 1
Author(s): Hemchandracharya, Rasiklal C Parikh
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

View full book text
Previous | Next

Page 569
________________ ५५२ मुद्गरक (वि.) १८२. | यमक (अ) २९८ (लक्षण), २९९, मुद्रा (अलंकार) (नि.) ४०५. ३००, ३०५; (वि.) ३०६. मुनि (वि.) ३२६. यमकादि (अ.) २००. मुनिविषया (रति) (अ.) १०७. यमकाद्यलङ्कार (अ.) १७१. मुरजबन्ध (अ.) ३१३, ३१४. यमकानुप्रास (अ.) ३९८. मुरल (वि.) १८२. यमुना (वि) १८३. यवन (वि.) १८३. मुसल (अ.) ३१५; (वि.) ३१५. यशस् (अ.) ३. मूढ (संशय) (वि.) ३८५, २८६. मूर्छा (वि.) १५४, ३३५... यात्राजागर (वि) ४४५. मूर्छित (वि.) ३३५, याम्या (वि.) १८४. युक्ति (वि.) ४०५. मृति (अ.) १२६, १२७, १४३ (लक्षण). युक्तिका (वि.) ४४४. मृदु (वि.) २७९. युद्धवीर (अ.) ११७, ११८. मेकल (वि.) १८३. युधिष्ठिर (अ.) ४१३; (वि.) ३०८. मेखलास्खलन (अ.) १०९. युवराज (वि.) ४४४. मेघक्षीर (वि.) २२७. योग (अ.) ३६८, ४३२. मेरु (वि.) १८१. योगशास्त्र (अ.) २२८, २२९. मोक्ष (वि) २, १२१. योगशास्त्रनैपुण्य (वि.) ११. मोक्षफल (शान्तरस) (अ.) १०६. रक्ति (वि) ३३३. मोक्षशास्त्र (अ.) २७१. रघु (वि.) २५२. मोक्षशास्त्रविरुद्धत्व (अ.) २७०. रघु-मघवन् (वि.) ४५९. मोटायित (अ.) ४२४, ४२६ (लक्षण. रङ्ग (वि) १००, ३३५. मोह (अ.) ११६, ११८, ११९, १२६, रचना (अ.) २८९. १२७, १३७ (लक्षण). रञ्जन (वि.) ४४८. मौग्ध्य (अ.) ४३१. रति (अ.) १०६, १०७, १०८, १२५ म्लेच्छ (वि.) १९९. (लक्षण), १२६; (वि.) ९९, १०१, यति-वानप्रस्थ-गृहस्थ (वि.) ४४२. १०६, १०७, १५३. यत्न (अ.) ४२२; (वि) ४५५. रति-क्रोध (वि.) १६८. यत्नजा (अ.) ४२२. रति-जुगुप्सा (वि.) १६४, १६८. यथासंख्य (अ.) ४०२; (वि.) ४०२. | रतिप्रलाप (अ.) ११६. यदु (वि.) ४५९. रतिवासना (अ.) ४२४. यम (अ.) १२०; (वि.) १२०. । रतिसंभोगात्मिका (नाटिका) (अ.) ४३६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631