Book Title: Kavyanushasana Part 1
Author(s): Hemchandracharya, Rasiklal C Parikh
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
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मरण (अ.) ११०, ११६, ११८ (वि.)। (त्री अयत्नज अलंकार), ४२९
(लक्षण); (वि.) २७४, २८२, मरणोद्यम (अ.) १११.
२८७, २८८, २८९, २९४. मर्त्यपातालीया (प्रकृति) (अ.) १७४; | माधुर्यव्यंजक (रचना) (अ.) २८९. (वि.) १७५.
मान (विप्रलम्भ) (अ.) १११, ११२ मलद (वि.) १८२.
_(लक्षण), १२८. मलय (वि.) २६, १८१, १८३. मानसाध्यवसाय (वि) ९९. मलयवती (अ.) १६३.
मानुषी-प्रकृति (अ.) १७३; (वि.) १७४. मल्लवर्तक (वि.) १८२.
माया (अ.) १२०; (वि.) १२०, ४३९. मसूण (वि.) ४४५.
मालव-पचाल (वि.) ४३३. महत्तरा (वि.) ४४४.
मालोपमा (अ.) ३४६. महर् (वि.) १७९.
माल्यशिखर (वि.) १८३. महाकवि (अ.) ३०५. ४६६; (वि.) मास (वि.) १८७. ३०६, ४११, ४६१.
माहिष्मक (वि.) १८२. महाकविलक्ष्य (अ.) १७१.
माहिष्मती (वि.) १८२. महाकाव्य (अ.) ४४९ (लक्षण); (वि.) मिथ्या (वि.) ९९.
मिथ्याज्ञान (वि.) ९३, ९४, ९५. महाकाव्यव्योमन् (अ.) २६१.
मिथ्याप्रतीति (वि.) ९३. महादेवी (वि.) ४४४.
मिश्र (वि) ४४५. महानट (अ.) २२७.
मीलित (अ.) ३७१; (वि.) ३७१. महाराष्ट्र (वि.) १८२.
मुक्तक (अ.) १०९, ४०३, ४६५, महाराष्ट्रभाषा (अ) ४६४.
४६६ (लक्षण); (वि.) १०५, महावाक्यात्मक (प्रबन्ध) (वि.) ४५६.
२९४, ४०३. मही (वि) १८३.
मुख (अ.) ४४९, ४५० (लक्षण); महेन्द्र (वि.) १८३.
(वि.) ४५०. महेश्वर-अर्जुन (वि.) ४५९. मुख-वैवर्ण्य (अ.) ११८. महोदयमूल (वि.) १८३.
मुख-शोषण (अ.) ११६. मागधी (अ.) ३३०, ३३१, ४६३;
मुखाच्छादन (अ.) ११९. (वि.) ३२५.
मुख्य-अर्थ (अ.) ४२ (लक्षण). माधव (अ.) ४९०; (वि.) १९३, ४५०. | मुख्या-वृत्ति (वि.) ८९, २७४. माधुर्य (अ.) २८९ (गुणलक्षण), ४०६, | मुख्या-शक्ति (अ.) ५८.
४०८ (सात्त्विकगुणलक्षण), ४२८ | मुग्धा (अ.) ४१३.
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