Book Title: Kavyanushasana Part 1
Author(s): Hemchandracharya, Rasiklal C Parikh
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
View full book text
________________
नवन् (रस) (अ.) १८६, ( स्थायिन् ) निदर्शन ( कथाप्रकार) ४६३. (लक्षण)
(अ.) १४७. नागपाश (वि.) ३२१. नागर (वि) १९९.
निद्रा (अ.) ११०, ११४, १२६, १२७, १३२ (लक्षण), १३३.
निन्दा पूर्विका (स्तुति) (वि.) ३८१.
नागलोक (वि.) १७८, नागीया (दिश ) (वि.) १८४. नाटक ( अ.) ८७, २९३, ४३२, ४३३ (लक्षण); (वि) १००, ४३३, ४३४,
निपुण ( अ ) ४१३.
निपुणता ( अ ) ७.
४३५, ४३६, ४४३. नाटकीया (वि.) ४४४. नाटिका (अ.) ४३६, ४३७ ( लक्षण), ४६२ (वि.) ४३६, ४४४.
नियतप्रमातृ ( अ ) ८८. नियताप्ति (वि.) ४६५. नियम (अ.) १२०. निरर्थकत्व (अ.) १९९, २००. निरलंकार - शब्दार्थ (अ.) ३३. निराकाङ्क्षा (काकु) (अ.) ३३६. निराशत्व ( अ ) १०८.
माय (वि.) ९६, ४४५.
निर्देश ( अ ) ६५.
नाट्यकर्मन् (वि.) २७७. नाट्यशास्त्रनैपुण्य (वि.) १०. नाना विभूति ( अ ) ४३३; (वि.) ४३३. निर्मुण्ड (वि.) ४४४.
निर्भर्त्सन (वि.) ३३५.
नाममाला (वि.) ७. नायक (अ.) ४०६, ४३४, ४३६; (वि.) ४३४. नायकभेद (अ.) ४१०, ४२२. नायकवर्णन (वि.) ४५८.
४१०, ४१२,
(अ.) ४१३, ४२१; (वि.) ४३२.
नायिकालक्षण ( अ ) ४१३. नायिका वर्णन (वि.) ४५८.
नाराच (वि.) ४५०. नारी ( भाषा) (अ.) २. नासा विकून (अ.) ११९. नासिक्य (वि.) १८२. नासौष्टक पोलरूपन्दन (अ.) ११४. निदर्शन (अ.) ३५३ ( अलंकार लक्षण), ३७१; (वि.) ३३९, ३५४, ३५५, ३.६१, ३७१.
Jain Education International
निर्वहण ( अ ) ४५५ (लक्षण); (वि.)
- १६३, ४५१, ४५५. निविघ्ना प्रतीति (वि.) ९८. निर्वेद (अ.) ११०, ११६, १२०, १२६ १२७, १२९, १३९ (लक्षण) (वि.) १२१, १३९, ३३५ निर्देश (वि.) ९९
निःश्वास (अ.) ११६.
निषेध (वि.) १८१.
निषेध (अ.) ३७१. निष्ठीवन (अ.) ११९.
निष्पत्ति (वि) १०३. निष्पत्तिहेतु (वि.) १०३. नीच (स्वर) (बि.) ३३५. नीच जुगुप्सा (अ.) ४०६, ४०७, नीचप्रकृति (अ.) ११८.
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631