Book Title: Kavyanushasana Part 1
Author(s): Hemchandracharya, Rasiklal C Parikh
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

Previous | Next

Page 562
________________ नीवि (वि.) ७. | पददोष (अ.) १९९ (लक्षण). नीलवर्षगिरि (वि.) १८१. पदार्थाभिनय (अ.) ४४५. नीहार (वि) ९४. पदोपजीवन (वि.) १६. नृत्त (अ) २६९. पद्म (अ.) ३१५; (वि.) ३२१. नृत्तप्राधान्य (वि.) ४४७. पयोष्णी (वि.) १८३. नृत्तस्वभाव (वि) ४४७. परकीया (अ) ४१३. नृत्य (वि.) ४४८. परपुरप्रवेशप्रतिमता (अ.) १६. नेतृ (अ.) ४०६. परब्रह्मास्वाद (अ) ८८; (वि.) ९६. नेपाल (वि.) १८२. परशुभक्त (वि.) २२७. नैपुण्य (वि.) १०, ११, १२, १३. परशुराम (अ.) ११८. नैयायिक (वि.) ६६. परस्त्री (अ.) ४१७, ४१८, ४२१. नैती (वि) १८४. परस्थ (हास) (अ.) ११४, ११५. न्यायपरीक्षा (अ.) ३२९. परस्परावलोकन (अ.) १०९; (वि)१७७. न्यायवैशेषिकीय (तर्क) (वि.) १०. परागत्व (अ.) १५२, १६५; (वि) न्यूनपदत्व (अ.) २०१, २०२. १५२. पक्ष (वि.) १८७. परिकथा (अ.) ४६४ (लक्षण); (वि.) पञ्चन् (गुण) (अ) २७४; (वि.) २८७. २९४, ४६४. पञ्चदशन् (भाषा लेष) (अ.) ३३०, परिकर (अ.) ४०१; (वि.) ४०१. पञ्चदशधा (पादजयमक) (अ.) ३००. परिचारिका (वि.) ४४४. पञ्चवटी (वि.) ६९. परितपन (अ.) ४३१. पञ्चशतजल (वि.) १८१. पञ्चश्रुतिक (अ.) २६९. परिपाटि (वि.) ४१९. परिवृत्तनियमानियम (अ.) २७१. पश्चस्थल (वि.) १८१. परिवृत्तनियमानियम-विशेषसामान्यविध्यनुपञ्चाङ्ग (मन्त्र) (वि.) २२८, ४५८. वाद (अ.) २६१, २७१. पञ्चाद्य-दशान्त (अंक) (वि.) ४३४. पश्चालमार्गनिर्वाह (वि.) २८०. परिवृत्ति (अ.) ३८९ (लक्षण); (वि.) पञ्चाशत् (भाव) (अ.) १४७. पठित (वि.) ४०५. परिसंख्या (अ.) ३९५ (लक्षण); (वि.) पतत्प्रकर्षत्व (अ.) २०१, २१३. ३३९, ३९५. पतित (वि.) ३३५. परुषरचना (अ.) २९.. पद (अ.) २२६, २२७, २२९, २३१, परोढा (अ.) ४१७. २३७, २३८, २४०, २४१, | पर्या (अ.) ४६६. २४२, २५९, ३२४. " पर्याकोश (अ.) ४६५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631