Book Title: Kavyanushasana Part 1
Author(s): Hemchandracharya, Rasiklal C Parikh
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 555
________________ गोष्ठी (अ.) ४४५, ४४९ (लक्षण). चतुर्धा (अ.) (दक्षिणादिनायकभेद) ४१०; गोष्टीगृह (वि.) ४५९. (वि.) (अनुयोग) २०.. गौड (वि.) २७५. चतुर्वर्ग (अ) २७०. गौडमार्गनिर्वाह (वि.) २७९. चतुर्वर्गफलोपायत्व (अ.) ४५१. गौडीया (अ.) २९२. चतुर्वर्गव्युत्पत्ति (वि.) ४. गौण (अ.) ४४, ४५ (लक्षण). चतुर्वर्गशास्त्र (अ.) २६९. गौणवृत्ति (वि.) ३६८. चतुर्विध (व्यतिरेकालंकार) (अ.) ३८३. गौणी (शक्ति) (अ.) ५८, ६६. चतुर्विधाभिनय (वि.) ९६. गौणीवृत्ति (वि.) ३५०. चन्द्रभागा (वि.) १८३. गौरवर्ण (वि.) १८६. चन्द्राचल (वि.) १८३. ग्रन्थविस्तरभीरु (वि.) ४५६. चन्द्रापीड (अ.) ११२. प्रन्थिक (वि.) ४५३, ४६३. चमत्कार (अ.) १०८; (वि.) ९९, १६६, प्रन्थिपणिका (वि.) १८२. २७७. ग्राम्य (वि.) १९९.. चमराजिन- (वि.) १८३. ग्राम्यता (वि.) २८२. चम्पू (अ.) ४४९, ४६५ (लक्षण). ग्राम्यत्व (अ.) २६१, २६२. चरणकरण (अनुयोग) (वि.) २. ग्राम्यापभ्रंशभाषा (अ.) ४६१. चर्वणा (अ.) १०७; (वि.) ९७, १८२. , प्रीष्म (वि.) १९४. चर्वणापात्र (वि) १०१. ग्लान (वि.) ३३५. चर्वणाभास (वि.) १४७. ग्लानि (अ.) ११०, ११६, १२५, १२६, | चर्वणायोग्य (अ.) १२९. १२७, १२९, १.६ (लक्षण). चर्वणीयत्व (अ) ११४, ११६, ११७, घर्षण (वि.) ३३५. ११८, ११९, १२०, १२१. चकोर (वि.) १८२. चय॑माणतैकप्राण (अ.) ८८. चक्र (अ.) ३१५; (वि.) ३१६. चळमाणतैकसार (वि.) १०२. चक्रवर्तिक्षेत्र (वि.) १८१. चव्यचित्रकनागर (वि.) १९. चक्रवर्तिचिह्न (वि.) १८१. . चानल्य (वि.) १०१. चक्रवर्तिन् (वि.) १८१. चाटु (अ.) १०९. चतुर् (अ.) (भेद) ३९५; (वि.) (द्विश्) चाण्डाली (अ.) ४२२. १८३; (लावणसमुद्र) (वि.) १८०. चातुराश्रम्य (वि.) १८२. चतुरङ्का (नाटिका) (अ) ४३६. . चातुर्वर्ण्य (वि.) १८२. चतुरङ्गयुद्ध (वि.) ४५८, ४५९. चातुःषष्टिक (अ.) ४३०. चतुरोदात्तनायकत्व (अ.) ४५७. चान्द्रमस (वि.) १८७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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