Book Title: Kavyanushasana Part 1
Author(s): Hemchandracharya, Rasiklal C Parikh
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

Previous | Next

Page 556
________________ चापल (अ.) ११६, ११८, १२६, | चेतोव्याप्ति (विकास) (अ.) २९१. १२७, १३४ (लक्षण), ४३१. चेलभ्रमण (अ.) १२०; (वि.) १२०० चारी (वि.) ४४७. चैत्र (वि.) १८७. चारुदत्त (अ.) ४१०. चौड (वि.) १८२. चित्त (अ.) २९०. च्विडीप्रत्यय (अ.) ३२७. चित्तविस्तार (विस्मय) (अ.) १२०. छन्दस् (अ.) ४६२. चित्तवृत्ति (अ.) (स्थायिव्यभिचारिलक्षणा) | छन्दोनुप्रवेशिता (वि.) ४४८. ८८, १२५; (वि.) ९४, १२१, | छन्दोनुशासन (वि.) ७. ३३४. । छन्दोलंकारादि (वि.) ४४७. चित्तवृत्तिगण (अ.) १४५. . छलित (अ.) ४४९. चित्तवृत्तिरूपा (रति); (वि.) ९३. छाया (अ.) १४, ४२९; (वि.) ४०५. चित्तवृत्तिवासनाशून्य (प्राणिन) (अ.) | छिन्नोद्भवा (वि.) २२७. छेदन (अ.) ११६. ' चित्तवृत्तिविशेष (अ.) १२४, १२५; जडता (अ.) ११०, ११६, १२०; . (वि.) १४४, १५८. (वि.) ९१. चित्तवृत्तिसमर्पणा (वि.) ३३४... जन (वि.) १७९. चित्तवृत्ति स्थाय्यात्मिका (वि.) ८९., जनक (वि.) १२३, ४११. चित्तवृत्तिस्वभाव (अ.) ४३१. जनपद (वि.) १४२, १८३. चित्र (शब्दालंकार) (अ.) ३०७ (लक्षण), जन्तु (अ.) १२४, १२६. जय (वि.) ४५७. चित्रकर्मादिक (अ.) २६७. . | जरासन्ध (वि.) ४५८. चित्रतुरगादिन्याय (वि.) ९३. | जर्त (वि.) २१८. चित्रनैपुण्य (वि.) १३. . जागर (अ.) ११०. चित्रपट (वि) १०५. जाड्य (अ.) १२६, १२७, १३०, चित्रास्वात्यन्तर (वि) १८४. (लक्षण). चिन्ता (अ) १०३, ११०, ११६, १२६, जाति (अ.) २६, ४३, १७९, ३४०, १२५, १३८ (लक्षण), १६२; (वि.) ३५८, ३५३, ३७९ ( लक्षण ), ४०३, (वि.) ४३, १७९, १९९, चुम्बन (अ.) १०९, ३३९, ३४४, ३८०, ४०३, ४०५. चेट (वि.) ४३६, ४४४. जामदग्नि (अ.) ४११: चेटी (अ.) ४०६. | जामदग्न्य (अ) १५६. चेतश्चमत्कृतिरूप (भास) (अ.) १३८. । जालन्धर (वि.) १८३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631