Book Title: Kavyanushasana Part 1
Author(s): Hemchandracharya, Rasiklal C Parikh
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 546
________________ ५१९ अभिधा - (३) ५२. अमिधान (वि) ३३९अभिधानकोश (अ.) २२८; (वि.) ७७. अभिधेय (शोक), (वि.) ९२. अभिधेयप्रयोजन (अ.) ३. अभिनय (अ.) ६५. अभिनयन (वि.) १००, १०१. अभिनेय (अ.) २९२, ४०३, ४३२ (प्रेक्ष्य); (वि.) ९२, २९२, ४०५. अभिनेयप्रबन्ध (वि.) ४०३. अभिनेयार्थ : (वि.) २९३. अभिनेयार्थ - काव्य (वि.) १७६. अभिलाष (विप्रलम्भ) (अ.) (वि.) ९१. १११, अभिलाषमात्र रा ( रति) (वि.) १०७. अभिलाष - शृंगार : ( अ ) ४२४. अभिसारिका (अ.) ४१८, ४२१ (लक्षण) अभेद - प्रत्यय : ( अ ) ३६८. अभ्यास (अ.) १३ (लक्षण), १४. अभ्यासक क्षण - वाक्यभेद ( अ ) २२४; (वि.) २२४. अभ्याससंस्कृता (प्रतिभा) (अ.) १४. अभ्युदय (वि.) ४५७. अभ्युपपत्ति (अ.) ४०.९. अभ्युपपाय (वि.) १००. अमंगलव्यंजक (अ.) २२९, २३०. अमर्ष (अ.) ११६, ११७, १२६, १२७, १३८, ४३१ : (लक्षण); (वि.) ३३५. अमात्य (अ.) ४३५; (वि.) ४११, ४३५. अम्लदाडिमादिरसास्वाद (अ.) ११४: अयत्नज - अलंकार (अ.) ४२८. अयन (वि.) १८७. Jain Education International : अयुक्तता (अ.) १२३५. अयोग (वि) ३७१. अयोग- व्यत्यय ( अ ) ३६९. अर्कास्तसमयवर्णन - (वि.) ४५८. अर्जुन (वि.) ४५८. अर्थ (अ.) ४२, ६४ (= प्रयोजन), ३२८; (वि.) १०२. अर्थक्रिया (वि.) ९३. अर्थगत (विशेष) (अ.) ३३६. अर्थगुण (वि) २७६, २७८, २८२. अर्थचिंतन (वि.) ९१. अर्थदोष (अ) २६१ (लक्षण). अर्थप्रधान ( रौद्र) (अ.) १०६. अर्थवैचित्र्य (अ.) ४५७. अर्थव्यक्ति (वि.) २८५. अर्थशक्तिमूल (व्यङ्ग्य) (अ.) ६३, ७२, ८२. अर्थशास्त्र नैपुण्य (वि.) ११. अर्थशास्त्रविरुद्धत्व (अ.) २७० . अर्थलेष (अ.) .३२९, (वि.) ३२८. अर्थाधिगति (अ.) ६६, (वि.) ६६. अर्थान्तर- (अ.) ३३६. अर्थान्तरन्यास (अ.) १४९, २३५, ३८४ (लक्षण), ३९९, ४-० १; (चि. ) ३२९, ३५३, ३६१. अर्थापत्ति (बि.:) ४०५: अर्थालंकार ( अ ) ३३९, ३९८, ४०१; (वि.) ३८०, ४०५. अर्थ्य (वि.) ९७. अर्धगत (अ.) ३१३. अर्धमागधी भाषा - (अ.) २. अर्धभ्रम (अ.) ३१३, (वि.) ३११. अर्धावृत्ति (अ.) ३००, ३०१. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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