Book Title: Kavyanushasana Part 1
Author(s): Hemchandracharya, Rasiklal C Parikh
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
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आक्रन्द (अ.) ११६; (वि.) ३३५. | आर्यावर्त (वि.) १८२. आक्षेप (अ.) ३६५, ३७१ (लक्षण), आर्हत (तर्क) (वि.) ९. - ३७२; (वि.) ३३५, ३३९, आलंबन (विभाव) (अ.) ८८, १०७. आख्यान (अ.) ५, ४६३ (लक्षण; आलस्य (अ.) १०७, ११४, ११६, . (वि.) ४६३.
१२५, १२६, १२७, १३४ (लक्षण); आख्यायिका (अ.) २९३, ४४९, ४६२ (वि) १०६.
(लक्षण), ४६३, ४६६; (वि.) २७५. आलिंगन (अ.) १०९. आगम (वि.) ८९.
आलेख्यप्रख्यता (अ.) १६. आग्नेयी (वि.) ९८४.
आवरणक्षयोपशम (अ.) ६. आंगिक (वि.) ९२.
आवली (अ.) ३७१. आतोद्य (वि.) १००.
आवेग (अ:) ११६, ११७, ११८, आत्मशक्ति (वि.) ४३४.
१२०, १२६, १२७, १४० (लक्षण), आरमस्थ (हास) (अ.) ११४ (लक्षण), १४१, ४३१. ११५.
आवेग-धैर्यसन्धि (वि.) १५३. आत्ययिककार्यावेदन (वि.) ३३५. आवेग-हर्ष (अ.) १२८. आनन्द (अ.) ३, (वि.) ३, ४५७. आशय (अ.) २२८. आनन्दसारव (वि.) १०१.
आशिष् (अ.) ४०४; (वि.)४०४; ४५६. आनर्त (वि.) १८३.
आश्रमवर्णन (वि.) ४५८. आयुर्वेदशास्त्रनैपुण्य (वि.) ११.
आश्वयुज (वि.) १८७. आरभटी (वि.) ४४०.
आश्वासकबन्ध (अ.) ४६१. आरंभोपाय (वि.) २२८.
आस्थाबन्धामिका (रति) (अ.) १०७, आरोप (अ.) ३४९.
१०८. आरोह (वि.) २८१.
आस्यराग (अ.) ११४. आर्जव (अ.) ४१३,
आस्वादन (वि.) ९९. आर्त (वि.) ३३५.
आहरण (अ.) ११६: आर्तत्वादि (वि.) २७१.
आहार्य (वि.) ४३४. आई (अ.) २८९.
. आहार्यावयव (रूपक) (अ.) ३५२. आर्द्रतास्थायिक (स्नेह) (अ.) १०६. आलादक (अ.) ३. आर्य (वि.) ३२०.
इङ्गित (अ.) ६६. आर्यदेश (वि.) १९९.
इच्छा (अ.) ४२२.... .. आर्या (अ.) ४६२; (वि.) ४६२. इतिवृत्तमात्र (वि.) २९४. . . आर्यागीति (नि.) ४५.. | इतिहास (अ.) ४३२; (वि.) ८.
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