Book Title: Kavyanushasana Part 1
Author(s): Hemchandracharya, Rasiklal C Parikh
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

View full book text
Previous | Next

Page 548
________________ ५३१ आक्रन्द (अ.) ११६; (वि.) ३३५. | आर्यावर्त (वि.) १८२. आक्षेप (अ.) ३६५, ३७१ (लक्षण), आर्हत (तर्क) (वि.) ९. - ३७२; (वि.) ३३५, ३३९, आलंबन (विभाव) (अ.) ८८, १०७. आख्यान (अ.) ५, ४६३ (लक्षण; आलस्य (अ.) १०७, ११४, ११६, . (वि.) ४६३. १२५, १२६, १२७, १३४ (लक्षण); आख्यायिका (अ.) २९३, ४४९, ४६२ (वि) १०६. (लक्षण), ४६३, ४६६; (वि.) २७५. आलिंगन (अ.) १०९. आगम (वि.) ८९. आलेख्यप्रख्यता (अ.) १६. आग्नेयी (वि.) ९८४. आवरणक्षयोपशम (अ.) ६. आंगिक (वि.) ९२. आवली (अ.) ३७१. आतोद्य (वि.) १००. आवेग (अ:) ११६, ११७, ११८, आत्मशक्ति (वि.) ४३४. १२०, १२६, १२७, १४० (लक्षण), आरमस्थ (हास) (अ.) ११४ (लक्षण), १४१, ४३१. ११५. आवेग-धैर्यसन्धि (वि.) १५३. आत्ययिककार्यावेदन (वि.) ३३५. आवेग-हर्ष (अ.) १२८. आनन्द (अ.) ३, (वि.) ३, ४५७. आशय (अ.) २२८. आनन्दसारव (वि.) १०१. आशिष् (अ.) ४०४; (वि.)४०४; ४५६. आनर्त (वि.) १८३. आश्रमवर्णन (वि.) ४५८. आयुर्वेदशास्त्रनैपुण्य (वि.) ११. आश्वयुज (वि.) १८७. आरभटी (वि.) ४४०. आश्वासकबन्ध (अ.) ४६१. आरंभोपाय (वि.) २२८. आस्थाबन्धामिका (रति) (अ.) १०७, आरोप (अ.) ३४९. १०८. आरोह (वि.) २८१. आस्यराग (अ.) ११४. आर्जव (अ.) ४१३, आस्वादन (वि.) ९९. आर्त (वि.) ३३५. आहरण (अ.) ११६: आर्तत्वादि (वि.) २७१. आहार्य (वि.) ४३४. आई (अ.) २८९. . आहार्यावयव (रूपक) (अ.) ३५२. आर्द्रतास्थायिक (स्नेह) (अ.) १०६. आलादक (अ.) ३. आर्य (वि.) ३२०. इङ्गित (अ.) ६६. आर्यदेश (वि.) १९९. इच्छा (अ.) ४२२.... .. आर्या (अ.) ४६२; (वि.) ४६२. इतिवृत्तमात्र (वि.) २९४. . . आर्यागीति (नि.) ४५.. | इतिहास (अ.) ४३२; (वि.) ८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631