Book Title: Kavyanushasana Part 1
Author(s): Hemchandracharya, Rasiklal C Parikh
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 549
________________ इतिहासादि (वि.) '३. इन्द्रकील (वि.) १८३. इन्द्रजाल (अ.) १२०; (वि.) १२०. इन्द्रजलनैपुण्य (वि.) १२. इन्द्रद्वीप (वि.) १८१. इन्द्रवज्र (वि.) २८८. इलावृत वर्ष (वि.) १८१: इवलोप (अ.) ३४४. इष (वि.) १८८. इष्टनामाङ्किता ( व . ) ४५७. ईप्सित (अ.) ११९; (वि.) ११९. ईर्ष्या - मान (विप्रलम्भ ) (अ.) ११२. ईहामृग (अ.) ४३२, ४३९ (लक्षण); (वि.) ४३९. उक्ति (अलंकार) (वि.) ४०५. उच्च (स्वर) (वि.) ३३५. उज्ज्वलता (अ.) २९०. उत्कर्ष (वि) २५७. उत्कर्षमानिता (अ.) १२४. उत्कर्षापाशङ्का (अ.) १२५. उत्कल (वि.) १८२. उत्कुष्ट (वि.) ३३५. उत्तम (अ.) (प्रकृति) ११८, ४०६. उत्तम काव्य (अ.) १५० (लक्षण). उत्तमप्रकृति (अ.) १७६ : (वि.) ९५. उत्तमस्पर्धा (अ.) ४०६, ४०७. उत्तरकुरु (वि.) १८१. उत्तरा (दिश ) (वि.) १८५. उत्तरापथ (वि.) १८३. उत्तरायण (वि.) १८७. उत्तरालङ्कार (अ.) ३९६; (वि.) ३९६. उत्तरोत्तरसंजल्प (वि.) ३३५. Jain Education International उत्पाद (वि.) १८२, १८३. उत्पाद्य (संशय) (वि.) ३८६. उत्पाद्योपमा (अ.) ३४७. उत्प्रेक्षा (अ.) १४९, २१२, २३५, ३४८ (लक्षण), ३९८ ४०५; (वि.) ३३९, ३६२, ४०५.. उत्साह (अ.) ११६, ११७ (लक्षण), १२६, १६०, १७७, ४०६, ४८७; (वि.) ९०, १२२. उत्साहवृत्तान्त (अ.) ४२२. उत्सृष्टिकाङ्क (अ.) ४३२, ४४१ (लक्षण); (वि.) ४८१. उदय (अ.) १२६, १२७, १२८. उदयन (वि.) ९३. उदात्त (अ.) ४०३; (वि.) ३३५, ४:३. उदासीन ( अ ) ४१७. उदीची (वि.) १८३, १८४, उदीच्य (जन) (वि.) १८६. उदीच्यवायु (वि.) १९१. उद्दीपन ( विभाव ) ( अ ) ८८, १०७. उद्धत (वि.) ४४५. उभेद (वि.) ४५२, उद्वेग (अ.) ११९ (वि.) ९१. उन्माद (अ.) ११०, ११६, १२६, १२७, १३७ (लक्षण); (वि.) ९१. उपकथा (अ.) ४६५; (वि.) ४६५. उपचरित (अ.) ४५. उपचारवचन (वि.) २८६. उपजीवन (अ.) १६; (वि.) १७, १८. उपदेश (अ.) ३, १७८. उपदेशगान (वि.) ४४८. उपनागरिका (वृति ) ( अ ) २९२. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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