Book Title: Kavyanushasana Part 1
Author(s): Hemchandracharya, Rasiklal C Parikh
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 545
________________ अनुका नकर्तृभाष (वि.) ९५. | अतरलोक (अ.) ४१२; (वि.) ४१२. अनुकूल (अ.) ४१०, ४१२ (नायकलक्ष ग). अन्तर्वेदी (वि.) १८३. अनुचारिका (वि.) ४४४. अन्तःपुरकन्या (वि.) ४३६. अनुचितार्थत्व (अ.) २२६, २३८, २३९. अन्योक्ति (अ) २०८, ३५८ (लक्षण), अनुदत्त (वि.) ३३५. ३६६, ४००; (वि.) ३३०, ३३९, अनुद्धतारचना (अ) २९१. ३५८, ३६१, ३६२, ३६३, अनुपचितावस्थ (स्थायिभाव) (वि.) ९०, अनुप्रास (अ.) २६१, २६८, २९५ | अन्वेषण (वि.) ४५३. (लक्षण); (वि.) २७९, २८२. अपकर्ष (वि.) २५७. अनुप्रास-रूपक (अ.) ३९८. | अपदेश (अ. ६५.. अनुबन्ध (वि.) ३३५, ३३६. अपभ्रंश (अ.) ३३०, ३३१, ४६३. अनुभाव (अ.) ८८, १०३, १०४, | अपरवक्त्र (अ.) ४६२; (वि.) ४६२. १०७, १०९, १११, ११४, ११६, अपवाद (दोष) (अ.) २७३ (लक्षण). ११७, ११८, ११९, १२०, १४५, | अपस्मार (अ.) ११०, ११६, ११८, १४७; (वि.) ८८, ८९, ९०, ९१, ११९, १२६, १२७, १३९ (लक्षण). ९२, ९४, ९५, १६, १०४, १०५. | अपहसित (वि.) ११५. अनुमान (अ.) ३९० (लक्षण); (वि.)। | अपह्नुति (अ.) ३८७ (लक्षण), ३८८;. ९४, ३३९, ३९१, ३९७. (वि.) ३३९. अनुमीयमान (रस) (वि.) ९१. | अपाची (वि.) १८४. अनुयोग (चतुर्धा) (वि.) २. अपादान (वि.) २५३. अनुवाद (अ.) १६५, १६६, २७२, अपाय (अ.) १२५. २७३; (वि.) १६०, १६६. अपुष्टार्थत्व (अ.) २६१, ४०१. अनुवाद्यत्व. (अ.) २१०. अपोह (अ.) ४३, ४४. अनुवृत्ति (ऋतु) (वि.) १९६. अप्रकृत (अ.) ३५८. अनुसंधान (वि.) ९५. अप्रधानत्व (वि.) ९९. अनुसंधि (अ) १७१. अप्रमेय (रस) (वि) १०३. अनुस्मृति (वि.) ९१. अप्रयुक्तत्व (अ.) २२६. अनृषि (अ.) ४३२. अप्रियदर्शनश्रवणावेग (वि.) १४१. अनेकविषय (रूपक) (अ.) ३५२.। अबाध्यत्व (अ.) १६२. • अनेक-असकृद् आवृत्ति (अ.) २९६. अभंग (लेष) (अ.) ३३२. अनेक-सकृदावृत्ति (अ.) २९५. अभाव (अ.) ३४०. भनौचित्य (अ.) १४९. अभिघातजा (मृति) अ. १४३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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