Book Title: Kavyanushasana Part 1
Author(s): Hemchandracharya, Rasiklal C Parikh
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

Previous | Next

Page 515
________________ 85 गान्धारी मध्यमा (वि.) २६९ 115 तदिदमनुभवविरुद्धम् (वि.) २८२ 184 गुणतः प्रागुपन्यस्य (वि.) ४६१ । 24 तर्जन्यनामिके श्लिष्टे (अ.) २३१ 54 गुणः कृतात्मसंस्कारः (वि.) १६६ 3 तस्य कर्म (अ.)३ 66 गोष्ठे यत्र विहरतः (अ.) ४४९. - 108 तस्मात्समता न (वि.) २८० 14 गौः स्वरूपेण (वि) ४३ [वा. प.] | [का. लं. सू अधि. ३. अ. २. सू.५] 199 ग्रन्थान्तरप्रसिद्धं (वि.) ४६५ 92 तस्सात्समासभूयस्त्वमोजः (वि.) .63 प्रैष्मिकसमयविक्रासी (वि.) १९६ . २७५ [का. द. परि. १. 'लो. ८०] 103 घटना लेषः (वि.) २७८ 178 तस्मादेवकृतविन (वि.) ४३३ 58 चक्रं रथो मणिर्भार्या (जि.) १८. ना. शा. अ. २,'लो. २३] 87 चतुर्विधा भजन्ते (वि.) २७. 107 तस्माद्येन रीतिविशेषेण (वि.) २७९ [भ.गी. अ. ७, "लो. ३६.] [का. लं. सू. अधि. ३. अ. १.सू.११] 6 चतुष्टयी शब्दानां (अ.) ४२. 129 तस्मालोकसीमानतिक्रमः (वि.)२८६ [म.भा. अ.१, पा.९. आ.२ ऋलक् सू.] 83 तस्याभिन्नः पदार्थानां (वि.) २५८ 138 चित्तमेव हि संसारो (वि.) ३२७ : 87 तेषां ज्ञानी तित्ययुक्त (वि.)२७० 189 वृगौ षष्ठो (वि.) ४६२. [भ. सी. अ. ७, 'लो. १७ ] [छ. शा. अ. ४. सू. १.] 133 यन्तोऽब्धिषष्ठस्यम्भो (वि.) ३१२ 59 छन्नानुरागगर्भाभिरुक्तिभिर् (अ.)४४५ 142 त्रीणि स्थानानि (वि.) ३३४ . 57 जम्बूद्वीपः सर्वमध्ये (वि.) १८० 145 खतलौ इति (वि.) ३४० 97 ज्ञेयं विशेषणाधारा (वि.) २७७ ।। 42 दानवीरं धर्मवीरं (वि.) ११७ [का. लं. सू. अधि. ३. अ. १. सू. ६] | . ना. शा. अ. ६, श्लो. ७३] 69 डेर्डा हेडालाइया काले (वि.) २१. 48 दासविटश्रेष्ठियुत (अ.) ४३६ 48 तच्छिद्रेषु प्रत्ययान्तराणि (वि.) [ना. शा. अ. २० C.s.s.] १२३ [यो. सू. पा. ४. सू. २७.] | | 51 दिव्यपुरुषाश्रयकृतो (अ.) ४३८ 37 ततश्चोपात्तकालादिन्यकारेग(वि.)९८ ना. शा. अ. २०.C. S. S.] 15 तत्रभवन् भगवन्निति (अ.) १७८. 130 दीप्तरसत्वं कान्तिः (वि.) २८७ । [का. लं. सू. अधि. ३. अ. २. सू. १४] 46 तथा हि दर्शने स्वच्छे.(अ.) ४३२ | 29 दृष्ट्वा प्रयुज्य 25 दृष्ट्वा प्रयुज्यमानान् (अ.) २३४ [रु. का. लं. ६. २६ ] 72 तथा हि नव योगिनो (वि.) २२९ 182 देवस्तुत्याश्रयकृत (वि.) ४४६ [यो. द. पा. १. सू. २१] 2 देवा दैवीं नरा नारी (अ.) २ 111 तदिदं गुरुलघुसंचययोर् (वि.) २८१ 38 देवा धीरोद्धता ज्ञेयाः (अ.) ४११ [का. द. परि. १. *लो. ९३] / [ना. शा. अ. ३४. *लो. १८ C.S.S.] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631