Book Title: Kavyanushasana Part 1
Author(s): Hemchandracharya, Rasiklal C Parikh
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
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. 132 रसाक्षिप्ततया यस्य बन्धः(वि.)३०७ | 169 विनोक्तिः सा (वि.) ४०२
. [ध्व. लो. उ. २, का. १७, का. प्र. उ. १०. का. ११३] 159 रसानुगुणशब्दार्थ (वि.) ३८० । 81 विनोत्कर्षापर्षाभ्यां (वि.) २५६ 86 राजा राजस्येन (वि.) २७० 59 विन्ध्यश्च पारियात्रच (वि.) १८१ 49 राजोपचारयुक्ता (अं.) ४३७ 48 विप्रवणिक्सचिवानों (अ.) ४३५
[ना. शा. अं. २० C.S. s.] ना. शा. अ, २० C. S. S.] 93 रीतित्रयेऽप्योजसः (वि.) २७५ 96 विभक्तिवाच्यवाचकयोगाद(वि.)२७।
[का. ले. सू अधि. ३. अं. १. सू. ५] 26 विभावानुभावव्यमिचारिसंयोगाद् 16 रूढेः प्रयोजनाद्वापि (वि.) ४६ (वि.) ८९ [ना. शा. अ. ६, १३२] 68 लंकुचायन्ताजं (वि.) १९८ 33 विरुद्धबुद्धयसभेदात् (वि.) ९३ 201 लम्माङ्कितामृतार्था (वि.) ४६५
158 विशिष्टमस्यं यद्रूपं (वि.) ३८० 66 लयान्तरप्रयोगेण (अ.) ४४९
| 167 विशेषणैर्यत्साकूतैर् (वि.) ४०१
का. प्र. उ. १०. का. ११८ 57 लावणो रसमयः (वि.) १८० ।
ig विशेष्यं नाभिधा (वि.) ४८ 42 लुड विलासे (अ ) ४२७
8 विषयस्य यत्र (वि.) १५ 30 वक्ता हर्षभयादिभिर् (अ.) २६७
[ का. मी. अं. १२ ] 54 वक्ष्याम्यतः परमहं (अ.) ४४१ 58 विष्कम्भकप्रवेशकरहितो (अ.)४४४
[ना. शा. अ. २०. C. S. S.] 78 वृद्धिरादैच् (वि.) २४४ 185 वंशवीर्यश्रुतादीनि (वि.) ४६१ ।। 133 वेदाश्वो द्विवसुः (वि.) ३१२ [ का. द. परि. १. लो. २२ ]
| 55 वेश्याचेटनपुंसकविटधूर्ता (अ.) ४४२ 125 वस्तुनःस्फुटत्वमर्थव्यक्ति: (वि)२८५, ना. शा. अ. २०. C. S. S.]
का. लं. सू. अधि ३. अं. २; सू १३] 99 वैमल्यं प्रसादः (वि.) २७७ 163 वस्तुमात्रानुवादस्तु (वि.) ३८१ [का. लं. सू. अधि ३. अ. २ सू. ३]
25 वागङ्गसत्त्वाभिनयैर् (वि.) ८८ 164 व्यधिकरणे वा यस्मिन् (वि.) ३९३ - [ना. शा. अ. ७. 'लो, ५ ]
- [रु. का. लं. अ. ७ सू. २२] 121 विकटत्वमुदारता यस्मिन् (वि.)२८४ |
53 व्यायोगस्तु विधिज्ञैः (अ.) ४४० [का. लं. सू अधि. ३. अ.१ सू. २२] ना. शा. अ. २० C. S. S.] 67 विचकिलकेसरपाटल (वि.) १९८ . 4 शब्दप्राधान्यमाश्रित्य (अ.) ५ 71 विज्ञानं वेदना संज्ञा (वि.) २२८ 12 शब्दायोंक्तिषु यः (वि.) १८ 77 विधेयोदेश्यभावोऽयं (वि.) २४४ ।
का. मी. अ. 11
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