Book Title: Kavyanushasana Part 1
Author(s): Hemchandracharya, Rasiklal C Parikh
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
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149 शब्दोपचारात्तादूप्यं (वि.) ३५० । 46 स तत्त्वदर्शनादेव (अ.) ४३२
64 शरद्भवानामनुवृत्तिरत्र (वि.) १९७ [ना शा. अ. २०. C. S. s.] 143 शारीमिथ वीणायां (वि.) ३३४ | 148 सत्सामीप्ये (वि.) ३४६ [ना. शा. अ. १९ श्लो.४० C. S.S.]
[सि. ५-४-१] - 18 शुकस्त्रीबालमूर्खाणां (अ.) २०२ | 139 सप्त स्वराः (वि.) ३३३ 181 शूरास्तु वीररौद्रेषु (वि.) ४४४
[ना. शा. अ. १९,'लो. ३७ 52 शृङ्गारहास्यवर्ज (अ.) ४३९
अनन्तरं (C. S. S.)] [ना. शा. अ. २०. C. S.S.] 67 समानयनमर्थानां (अ.) ४५५ 68 शोभानग्गन्धरसैः (वि.) १९८ । [ना. शा. अ. २१, C. S.S.] 44 शौचसंतोषतपः (वि.) १२० | 145 समासकृत्तद्धितेषु (वि.) ३४०
यो. सू. पा. २ स. ३२.1 153 समासोक्तिः (वि.) ३७८ 131 श्रव्यं नातिसमस्तार्थशब्दं (वि.) २८९/ 2 सरस्वत्यास्तत्त्वं (वि.) ४
[का. लं. परि. २, 'लो. २] 57 सर्वरसलक्षणाढया युक्ता (अ.)४४३ 127 श्रोत्रमनःप्रह्लादजनकं (वि.) २८५ [ना. शा. अ. २०.C. S. S.] 176 षष्ठयष्टमी च (वि.) ४२० 39 सर्वा चेयं प्रमितिः (वि.) १००
85 षाडजी चैवार्षभी (वि) २६९ । [वा. भा. अ. १. सू. ३] [ना. शा. अ. २८. लो.३८ C.S. S.]
8 सामर्थ्यमौचिती देशः (अ.) ६४ 52 षोडशनायकबहुलः (अ.) ४४० । 162 सामान्यस्तु स्वभावो यः (वि.) ३८१
ना. शा. अ. २०,C. S. S.1| 18 सामान्यान्यन्यथा (वि.) ४८ 62 सख्याः समक्षं (अ.) ४४६ 160 सा हि चक्षुर्भगवतस्तृतीयम् 29 संकेतव्यवहाराभ्यां (अ.) २६६
(नि.) ३८० 52 संदिग्धतुल्यप्राधान्य (वि.) १५७ | 118 सुखशब्दमेव (वि.) २८३
[का. प्र. उ. ५, का. ४०-४६] 117 सुखशब्दार्थ सुकुमारं (वि.) २८३ 40 संदर्भेषु दशरूपकं श्रेयः (वि.) १०५ | 41 सुलभावमानी हि मदनः (वि.)१०९ [का. लं. सू. अधि १,अ. ३. सू. ३० 152 सषा सबैव (वि.) ३५१ 11 संरब्धसास्रनेत्रं च (अ.) ११५ । [भामह का. लं. परि. २ लो. ८५]
[ ना. शा. अ. ६. ५९ ।। 124 सोऽयमुक्त्यन्तर भिहितः (वि.)२८५ 35 संसर्गादिर्यथा (वि.) ९७
[का. द. परि. १, लो. ७३] 8 संसर्गों विप्रयोगश्च (अ.) ६३ 49 स्त्रीप्राया चतुरङ्का (अ.) ४३६
[वा. प. का. २. श्लो. ३१७] [ना. शा. अ. २०. C. S. S.] 17 संहितैकपदवत् (अ.) २०१ . 51 स्त्रीभेदनापहरणावमर्दन (अ.) ४३८ [का, लं. स. अधि. ५, भ. १ सू. २]
[ना. शा. अ. २०]
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